Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company
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(९८)
क्षय थाय छे अने अनंत ज्ञानादिक सहज अनंत चतुष्टयी प्रगट थाय छे. यावत् अवशिष्ट अघाति कर्मनो पण अंत थतांज अज, अविनाशी मोक्ष पदवी प्राप्त थाय छे.
(१२० ) मन अने इंद्रियोने वश करीने विपयलालसा तजवाथी आवो अनुपम लाभ थतो जाणीने कोण हतभाग्य कामभोगनी वाछा करीने आवा श्रेष्ट लाभ थकी चूकशे ? मुमुक्षु जनोने तो विषयवाछा हालाहल झेर जेवी छे.
(१२१ ) विषयलालसा हालाहल झेरथी पण आकरी छे केमके झेरतो खाधा बादज जीवनुं जोखम करे छे अने विषयन चितवन करवा मात्रथी चारित्र-प्राणनु जोखम थाय छे. अथवा विष खाधुं छतु एकज वखत मारे छे पण विषयवांछा तो जीवने भवोभव भटकावे छे. ___ . ( १२२ ) विषयसुखने पैराग्य योगे तजींने फरी वांछनार वमन-भक्षी श्वाननी उपमाने लायक छे.
( १२३ ) योगमार्गथी पतित थता मुमुक्षुने योग्य आलंबन आपीने पाछो मार्गमां स्थापनामा अनर्गळ लाभ रहेलो छे..
( १२४ ) जेम राजीमतिये रहनेमिने तथा नागिलाए भवदेव मुनिने तथा कोशाए सिह गुंफावासी साधुने प्रतिबोध आपीने संयम मार्गमा पुनः स्थाप्या, तेम निःस्वार्थ बुद्धिथी मोक्षार्थी जीवने अवसर उचित आलंबन आपनार मोटो लाभ हासल करी शके छे.
(१२५) मोक्षार्थी जनोए हमेशां चढताना दाखला लेवा योग्य छे पण पडताना दाखला लेवा योग्य नथी. चढताना दाखलाथी आत्मामांशूरातन आवे छे, अने पडताना दाखलाथी कायरता आवे छे. . (१२६ ) चाहे तो पुरुष होय के स्त्री होय पण खरो पुरुषार्थ सेववाथीज ते सद्गति साधी शके छे. पुरुष छता पुरुषार्थहीन होय तो, ते पुंगणमां नथी अने स्त्री छता पुरुषार्थयोगे पुंगणनामा गणवा

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