Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 126
________________ (११८) स्तुति अने निंदा सरखी गणवी श्रेष्ट ए विषे कथा. ____पाटलीपुत्र नगरने विशे धर्मवादी राजा राज्य करतो हतो. तेवामां त्यां त्रण मंत्रवादी आल्या. ते मंत्रवादीओए राजा आगळ आवीने जणाव्यु के अमे मंत्रवादी छीए; आथी राजाए तेमांना एकने का के शुं तमे जाणो छ ते मने कहो, त्यारे ते बोल्यो के मंत्र बळे हुं भूतने बोलावं छु. त्यारे राजा बोल्यो के तमारुं भूत के छ ? आथी मंत्रवादी बोल्यो के मारो भूत अति रुपवंत सिद्ध छे, पण ते भूतने, उपी दृष्टी करीने सामुं जुए ते मरे, अने तेने जोईने जे नीचुं जुए तेना सर्व रोग जाय अने निरामय थाय; ए. वचन सांभळीने राजाए तेने दूर जवाने कयुं अने कयु के मारे तेनो कशो खप नथी. पछी बीजा मंत्रवादीने बोलाव्यो, त्यारे ते कहेवा लाग्यो के मारो भूत अतीशे कुरुप छ पण जे कोई तेने देखी हसे नहीं स्तुति करे ते नीरोगी थाय अने जे निधा करे ते मरे. राजाए तेने पण कडं के मारे तेनो खप नथी. पछी त्रीजा मंत्रवादीने बोलाव्यो, ते कहेवा लाग्यो के मारो भूत कुरुप छे पण सारी नजरे के नटारी नजरे तेना सामु जुए तो तथा स्तुति करे के निदा करे तो पण तत्काळ रोगथी मुक्त थाय. ए वचन सामळीने राजा संतुष्ट थयो अने ते पंडीतने मान्यो अने पोतानी पासे राज्यसभामा राख्यो. बीजाओने यथायोग्य दान आपी राज रीत प्रमाणे वीदाय कीधा. । सार--- आ वात उपरथी सार ए लेवानो छ जे, जेनामां समविषमपणुं होय छे तओ स्वार्थवाळाने त्याज पुजाय छे एटले भान पामे छे परंतु जेओनामा समविषमपणुं एटले कोई ओछु अधीक होतुं नथी, सर्व समान होय. छे तेओ सर्वत्र पुजाय छे. हरेक मनुष्यमां आ गुणनी जरुर छे तो साधु पुरुषोमा तो अवश्य आ गुण होवोज जोईए. जे साधु त्रीजा भूतनी पेठे पोतानी स्तुति अगर निदा सामकीने रागद्वेष न करे तेज साधु खरा अने पूज्य जाणवा.

Loading...

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145