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लंका गई इजत गई, और जान भी जाती रही । ऐसे जानके प्रीत लगावो मती ॥ पर० ॥ १ ॥ परनारीके प्रसंगसे, मणीरथसे फणीघर लेडा ॥ नारी मीली ना धन मीला, और नर्क भी जाना पड़ा। ऐसे जातीको नीचे दिखावो मती ।। पर० ॥ २ ॥ परनारी के प्रसंगसे, पद्मोतरकी बिगडी गती || अपयश हुवा जीता मुघा, श्री कृष्णको सौपी सती ।। ऐसे लज्या हीन कहाओ मती ।। पर० ॥३॥ परनारी है छानी छुरी, देखो कही लग जायगी ॥ बचा रहो इनसे सदा तो, जिंदगी बच जायगी ॥ प्यारे विषयनमें ललचाओ मती॥ पर० ॥ ४ ॥ हसका कहना यही, परनारकी सोबत तजो।। ज्ञान सीखो त५ करो, भगवानको शुद्ध मन भजो ॥ बुरी वाता पे ध्यान लगावो मती ॥ पर० ॥ ५ ॥ (इति)
रोहाका त्याग करनेपर पद पर (अलख देखमें वास हमारा, मायासे हम है न्यारा-ए चाल)
॥ कहे सेठाणी सुणो सेठजी, सट्टो थे तो करो मती || सट्टाको सजगार बुरो हे, केई बिगड गये क्रोडपति ॥ ( अंचली) पेला में तो नही समजती, सट्टाको रुजगार किसो ॥ जब सट्टामें लगी समझने, सट्टे कर दियो असो मसौ। केई जणा तो बिगड़ गया है, केई लगा गया संमत मिति ॥ सट्टाको० ॥ १ ॥ चंद्रहार बोझामें दीनो, ठुस्सी दीनी बोरीमें ।। गेंद दिया गलियां के भाहि, विलकुल हो गई कोरी में || आगे थाने घणा वरजिया, थे नहीं मान्या मेरा पति || सट्टाको० ॥ २॥थे मागी सधली दे दीनी, एसी हो गई भोली में ।। सट्टो कदी करो मत सेठा, आगो बालो होली में । हाट हवेली सबली वेची, सोनों रुपो रती रती ॥ सट्टाको० ॥ ३ ॥ ऊचा नीचा भाव जो आवे, जदी सट्टावाला घबराये ॥ बारे बजा लग निंद न आवे, आर्तध्यानमें लग जावे ।। अये थे काइ भने वेच