Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ (१३६ ). सो, विगड गइ हे बुद्ध मती ॥ सट्टाको०॥४॥ खोयो घणो कमायो थोडो, फस गया खोटा धंधा में | वरण नही चुकावोगा तो, लोग मारसी दोठा में ॥ लोग दिवाल्या थांने केसी, सुण्या नही जावे मेरा पति ॥ सट्टाको० ॥ ५ ॥ दो हजार जावदमें गुमाया, दस हजार मंमाईमें || आडतीया की चिठी आइ, थांने बांच सुणाई में।, कहे सेठाणी सुणो सेठजी, सोचतो दिलमें करो मति ॥ सट्टाको० ॥६॥ संवत् उगणीसो साल पिच्चोतर, फागण मासमें ख्याल रची। रतनलाल यु कहे सभा में, सट्टे कर दियो असो मसो॥ बडे बडे साहु कार जिनकी, बिगड़ गई बुद्धि मति ॥ सट्टाको० ॥ ७ ॥ (इति) ******* * * r वाचकोंको खास जरूरी सुचना. सब कोई भव्यात्माओंको पवित्र ज्ञानामृतका अपूर्व लाभ अनुकुलतासे भाले इस शुभ इरादेसे भेट तरीके या अल्प मूल्य में देनमें आनेवाली कोई पुस्तकपर ममत्व बुद्धि रखकर पुस्तकका दुरुपयोग करना नही. परंतु प्रमाद रहित पुरी जिज्ञासा र रउस पुस्तकका आप पांचके लाभ लेकर दूसरे जिज्ञासु भार बहेनोंको पुस्तकका वांचनका लाभ सबकुं छूट से लेने देना. आरे इसी तरहसे दुगुणा लाभ मिलाकर पुस्तकका पवित्र उद्देश सफल करना. इस तरहकी हर भाई वहनोको नम्रतासे सूचना करने में आती है. जिस उच्च उद्देशसे पुस्तको देनेमें आती है उसको सफल बनाना और ग्रन्थकी किसी प्रकारसे आशातना नही करनी यही वाचकोको विनति है. संवत १९९३ ज्ञान पंचमी. .. आपका शुभेच्छ. शाह. शिवनाथ ढुंबाजी-पोरवाल,

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145