Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 129
________________ (१२१) आवी. ते अश्वी ओळंगता रस्तामा एक जगो उपर तेनो घोडो मुतयों. आ मुतरथी खाबोचीयुं भराणुं ते जमीने सोशी लीधुं नहीं अने थंबाई रह्य आ भराई रहेलुं खाबोचीयुं राजाए जायुं अने त्याथी आगळ चाल्या. साजरे फरीन तज रस्त आव्या तो पलु मुतनु भरेलु खाबोचायुं जेमन तेमज दीटुं. राजाए आथी विचार्यु के जो आ जगो उपर सरोवर होय तो तेनुं पाणी कदीसुकाय नहीं. राजाना मननो आ विचार तेनो मंत्री जे साथे हतो ते समजी गयो. अने पछी त्याथी घेर आव्या. राजा आ वात विसरी गया परंतु स्वामीन चित्तेच्छित काम करनार मंत्री ते मुली गयो नहीं. एणे धेर आवी थोडा दाहाडे एज जगा उपर सरोवर बधाव्यु. केटलाक दिवस वीती गया पछी पाछा तेज रस्ते राजानी स्वारी अगाउनी माफक नोकळी अने ज्यां घोडो मुतयों हतो त्या आवी जुवे छे तो जळथी भरपुर लेहेरा लेतुं सरोवर दाटुं. राजा मंत्रीने पुछवा लाग्यो के आ सरोवर कोणे खोदाव्युं ? त्यारे मत्रीए जवाब आयो के हे राजन ! ए सरोवर आपनी इच्छानुसार में खोदाव्यु छे. आयी राजा घणो, खुशी थयो अने मंत्रीने कवा लाग्यो के, हे मंत्री! तें मारां मनन इच्छित जाण्यु तेथी तुं महा वुद्धिवान छे तेमज ते मारी धारणा मुजब वगर कहे कहावे काम कराव्यु तेथी तुं स्वामीनी इच्छा पार पडेली जोवाने घणो आतुर छ एम सिद्ध थाय छे; माटे तुने धन्य छे. सार आ कथाथी सार ए ग्रहण करवानो छे के, सेवकोए स्वामी-शेठनं मन वरती लेई तमनी इच्छानुसार काम बीना पालवे करवू. जेथी तमनी महरवाना थता पातानु कल्याण थाय छ. मुग्ध शेठकी कथा, (हिन्दी भाषा) जिनदत्त शेठका मुग्ध बुद्धिवाला मुग्ध नामका पुत्र था. वह पिताके प्रसादसे सदा मौज मजाम ही रहता था. बडा हुवा तत्र

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