Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 111
________________ ( १०३) पुष्टि थाय तेम पवित्र ज्ञान ध्याननो सतत अभ्यास करवो जोइए.. (१५८ ) मुमुक्षुजनोए स्त्री, पशु, पंडग विनानुं संयमने अनुकूळ स्थानज रहेवाने पसंद कर जोइए. ( १५९ ) मुमुक्षुजनोए कामविकार पेदा थाय एवी कोइ पण चेष्टा करवी न जोइए. स्त्री कथा, स्त्री शय्या, स्त्रीनां अगोपागर्नु निरीक्षण, स्त्री समीप स्थिति, पूर्वकरेली कामक्रीडानुं स्मरण, स्निग्ध भोजन तथा प्रमाणातिरिक्त भोजन, तथा शरीर विभूषादिक सर्वे तजवा जोइए. (१६० ) मुमुक्षुजनोए पूर्व थयेला महा पुरुषोना पवित्र चरि. त्रने जाणीने तेमनुं बनतुं अनुकरण करवाने सदा सावधान रहे जोइए. (१६१ ) मुमुक्षुजनोए गमे तेवा संयोगोमा संयमथी चलायमान थर्बु न जोइए. देव, मनुष्य के तिथचे करेली सर्व अनुकूल के प्रतिकूळ उपसर्ग परीषहोने अदीनपणे आत्म कल्याणार्थे सहन करवा जाइए. (१६२ ) ममक्षुजनोए मार्गमा चालता धुसरा प्रमाण भमीने आगळ जोतां कोइ पण न्हाना के मोटा जीवने जोखम न पहोंचे तेम करुणा नजरथी तपासीने चालवू जोइए. (१६३ ) मुमुक्षुजनाए जरुर पडतु बोलता कोइने अप्रीति न • उपजे ए हित, मित, अने सत्य, धर्मने वाधक न थाय तेवु भाषण करवु जाइए. (१६४ ) मुमुक्षुजनोए संयमना निर्वाह माटे जरुर पडये छत ४२ दोष रहित आहार पाणी विगेरे गुर्यादिकनी संमतिथी लावीने विधिवत् वापरवा जोइए. (१६५) मुमुक्षुजनोए कोइपण वस्तु लेतां या मूकता कोइ पण जीवनी विराधना थइ न जाय तेम सभाळीने ते वस्तु लेवी मूकवी जोइए. (१६६ ) मुमुक्षु जनोए लधुनीति, बडोनीति विगैरे शरीरना

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