Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ ( १०२ ) (१४९ ) मुमुक्षुजनोए शास्त्र विरुद्ध मार्गे वर्ततां थती 'चलहरणी' भिक्षाने सर्वथा तीने शास्त्र विहित मार्गे वतीन 'सर्व संपकरी, भिक्षानोज ख५ करवो युक्त छे. (१५० ) मुमुक्षुजनोए अकृत, अकारित अन असंकल्पितजे आहार गवेषीने गहण करवो जोइए. पोते नहि करेलो, नहि करावेलो, तेमज पोताने माटे खास सकरपीने गृहस्थाढिके नहि करेलो के करावलोज आहार मुमुक्षुजनाने कल्पे छे. तेवो पण आहार गवेषणा करता मळी शके छे. (१५१ ) यति धर्म याने सुमुक्षु मार्ग अति दुकर कह्यो छे; केमके तेमां एवा निर्दोष आहारथीज संयम निर्वाह करवानो यो छे. (१५२ ) ग्रहस्थ जनो पोताना माटे अथवा पोताना कुटुंबने माटे अन्न पानादिक नीपजावता होय तेमा एबो शुभ विचार करे के आपणे मोटे करवामा आवता आ अन्न पाणीमाथी कदाच भाग्य योगे कोई महात्माना पात्रमा थोडे पण अपाश तो मोटो लाभ थशे. आवो शुभ विचार गृहस्थ जनोने हितकारीज छे. (१५३ ) एवा शुभ चिंतन युक्त गृहस्थोए पोताने माटे के पोताना कुटुंबने माटे निपजावेला अन्न पाणी विगेरे मुमुक्षुमुनीने लेवामां बाधक नथी. (१५४ ) निर्दोष आहार लावी विधिवत् ते वापरनार मुनि संयमनी शुद्धि करे शके छे. तेथी उलटी रीते वर्तता संयमनी विरा धना थाय छे. ( १५५ ) मुमुक्षुजनोए शब्द, रुप, रस, गंध अने स्पर्श संबंधी सर्व विषयआसक्तिथी सावधपणे दूर रहे युक्त छे. (१५६) मुमुक्षुजनोए विषय वासनानेज हठावचा यत्न करवो जोइए. (१५७ ) मुमुक्षुजनोए गृहस्थोनो परिचय तीन ब्रह्मचर्यनी खूब

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145