Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company
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(१००)
नहिं. संयमना निर्वाह माटे जे काइ अशन पसनादिक जरुर होय ते पण शास्त्र आज्ञा मुजब सद्गुरुनी संमति लइने अदीनपणे गवेपणा करतां निर्दोष मळे तोज ग्रहण कर, एत्रार्जुमहावत कमु छे.
(१३३ ) देव, मनुष्य के तिर्यंच संबंधी विषयभोग मन, वचन, के कायाथी सेवा नहिं बीजाने सेवडाववा नहिं अने सेवनारने संमत थर्बु नहिं ए चोथु महावत जाणवू.
(१३४ ) कंइ पण अल्प मूल्यवाळी के बहु मूल्यवाळी वस्तु उपर मुर्छा राखवी नहिं, संयमने बाधकभूत कोई पण पस्तुनो संग्रह करवो नहिं, करावयो नहि, तेमज करनारने संमत थयु नहिं. ए पांचमुं महानत छे.
(१३५ ) अशन, पाणी, खादिम के स्वादिम रात्री समये (सूर्यअस्त पछी अने सूर्योदय पहेला) सर्वथा वापरवा नहि, चपरावया नहिं तेमज वापरनारने संमत थवु नहिं ए छठं व्रत छे.
(१३६ ) पूर्वोक्त सर्व महानतानु यथाविधि पालन करतां जेम रागद्वपनी हानी थाय तेम सावधानपणे प्रवृत्ति निवृत्ति मार्ग स्वीकारी तेनो यथार्थ निर्वाह करवो, अने अन्य आत्मार्थीजनोने यथाशक्ति यथावकाश सहाय करवी ते उत्तम प्रकारनो पुरुषार्थ छे.
( १३७ ) सद्गुरुनु शरण लही तेमनी पवित्र आज्ञानुसारे वर्तनार महाशयोनो सकळ पुरुषार्थ सफ थाय छे.
(१३८ ) सद्गुरुनी कृपाथी प्राप्त थयेला सद्बोधवडे, संयम मार्गमां आवता अपायो सहेलाइथी दूर करी शकाय छे.
(१३९) मुमुक्षुजनोए चंद्रनी पर शीतळ स्वभावी, सायरनी जेवा गंभीर, भारंड पंखीनी जवा प्रमाद रहीत, अने कमळनी परे निलेप थवं जोइ५. यावत् मेरु पर्वतनी परे निश्चळता धारीने सिंहनी जेम शूरवीर थइने वृषमनी परे निर्मळ धर्मनी धुरा मुनिजनाए

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