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सर्व मळनो त्याग निर्जीव स्थानमा जइने विधिवत् करवो जोइए.
(१६७) मुमुक्षुजनोए मुख्यपणे मनने गोपीने धर्म ध्यानमा जोडावु जोइए.जेम बने तेम तेने विविध विकल्प जाळी मुक्त राखयु जोइए.
(१६८ ) मुमुक्षुजनोए मुख्यपणे तथाप्रकारना कारणाविना मौनज धारण करी रहेज जोइए. जरूर जाणता सत्य निदोषज भाषण करवु जोइए.
( १६९ ) मुमुक्षुजनोए मुख्यपणे संयमार्थे जवा आववानी जरूर न होय तो कायाने काचबानी परे गोपवी राखवी जोइए, स्थिर आसन करीने पवित्र ज्ञान ध्याननोज अभ्यास करवो जोइए.
(१७० ) मुमुक्षुजनोए चालवानी, बेसवानी, उठवानी, सुवानी खावानी, पीवानी के बोलपानी जे जे क्रिया करवी पडे ते ते कोइ जीवने इजा न थाय तेमज संभाळ्थींज करवी जोइए.
(१७१ ) मुमुक्षुजनोए रसद्ध नहि थतां परिमितमोजी थकुंजोइए,
(१७२ मुमुक्षुजनोए संयम अनुष्ठानने समजपूर्वक प्रमाद रहित सेवाने अन्य मुमुक्षुजनाने यथाशक्ति संयममा सहायभूत थवु जोइए. एक क्षण मात्र पण कल्याणार्थीए प्रमाद करवो न जोइए.
(१७३ ) प्रीय मनोहर अने स्वाधीन भोगने जे जाणी जोइने तजे छे, तेज खरो त्यागी कहेवाय छे.
(१७४ ) वस्त्र, गंध, माल्य, अलंकार तथा स्त्री शय्यादिक नहि मळवा मात्रथी भोगवतो नथी, पण मनथी तो तेवा विषयमा सार मानीने मान रहे छे ते त्यागी कहेवाय नही.
( १७५ ) जो जळमां मच्छनी पद पंक्ति मालम पडे के आकाशमा पखानी पद पंक्ति जणाय, तोज स्त्रीना गहन चरित्रनी समज पडी श; ताप्तर्य के स्त्रीन। चरित्रनो पार पामवो अशक्य छे.
(१७६ ) प्रियालापथी कोइनी साथ बात करती कामनी कटाक्ष