Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 119
________________ ( १११) . (२३८ ) जन्म मरणना दुःखनो अंत थाय एवो उपाय विचक्षण पुरुष शीघ्र करवो युक्त छे केमके ते विना कदापि तत्त्वथी शाति थती नथी. ___ ( २३९ ) तत्त्वज्ञान पूर्वक संयमानुष्ठान सेववाथीज भवनो अंत थाय छे. (२४० ) परभव जता संबल मात्र धर्मनुज छे माटे तेनो विशेष ' खप करवो ते विनाज जीव दुःखनी परंपराने पामे छे. . (२४१ ) जेनुं मन शुद्ध-निर्मळ छे तेज खरो पवित्र छ एम ज्ञानीयो माने छे. (२४२ )जेना अंतर-घटमा विवेक प्रगटयो छे, तेज खरो पंडित छ एम मानवु. (२४३) सदगुरुनी सुखकारी सेवाने बदले अवज्ञा करवी एज खरु विष छे. (२४४ ) सदा स्वपरहित साधवा उजमाल रहेवु एज मनुष्य जन्मनु खरं फल छे. (२४५ ) जीवने बेभान करी देणार स्नेह रागज खरी मदिरा छ एम समजवु. (२४६ ) धोळे दहाडे धाड पाडीने धर्मधनने लूटनारा विषयोज खरा चोर छे. (२४७ ) जन्म मरणना अत्यंत कटुक फळने देनारी तृष्णाज खरी भववेली छे. , (२४८)अनेक प्रकारनी आपत्तिने आपनार प्रमाद समान कोइ शत्रु नथी. (२४९) मरण समान कोई भय नथी अने तेथी मुक्त करनार वैराग्य समान कोइ मीत्र नथी, विषयवासना जेथी नावुद् थाय तेज खरो वैराग्य जाणवो., ।

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