Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 120
________________ ( ११२ ) ( २५० ) विषयलंपट-कामांधसमान कोइ अंध नयी केमके ते विवेक शून्य होय छे. ( २५१ ) स्त्रीना नेत्र कटाक्षथी जे न डगे तेज खरोशूरवीर छे. (२५२ ) संत पुरुषांना सदुपदेश समान बीजं अमृत नथी. केमके तेथी भव ताप उपशांत थवाथी जन्म मरणना अनंत दुःखोनो अंत आवे छे. ( २५३ ) दीनतानो त्याग करवा समान बीजो गुरुतानो सीधो रस्तो नथी. ( २५४ ) स्त्रीनां गहन चरित्रथी न छेतराय तेना वो कोई चतुर नथी. ( २५५ ) असंतोषी समान कोइ दुःखी नथी केमके ते मंमण शेठनी जेवो दुःखी रहे छे. (२५६ ) पारकी याचना करवा उपरांत कोइ मोटुं लधुतार्नु कारण नथी. (२५७)निदोष-निष्पाप वृत्तिसमान बीजुं सारं जीवितर्नु फळ नथी. (२५८ ) बुद्धिबळ छता विद्याभ्यास नहि करवा समान बीजी कोई जडता नथी. (२५९) विवेकसमान जागृति अने मूढता समान निद्रा नथी. (२६०) चंद्रनी पेरे भव्य लोकने खरी शीतळता करनार आ कलिकाळमा फक्त सज्जनोज छे. (२६१ ) परवशता नर्कनी परे प्राणीओने पीडाकारी छे. ( २६२ ) संयम या निवृति समान कोई सुख नथी. (२६३ ) जेथी आत्माने हित थाय तेवुज वचन पदवू ते सत्य छे पण जेथी उलटुं अहित थाय एवं वचन विचार्या विना वदवू ते सत्य होय तो पण असत्यज समजवू. आधीज अंधने पण अंध कहवानो शास्त्रमा निषेध करेलो छे. (इति शम्)

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