Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company
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( १०१) अवश्य धारवी जोइए. (१४०) मुमुक्षुजनोए कंचन अने कामनीने दूरथीज तजवां जोइए.
(१४१ ) मुमुक्षुजनोए राय अने रंकने सरखा लेखवा जोइए, तथा समभावथी तेमने धर्म उपदेश आपको जोइए.
(१४२ ) मुमुक्षुजनोए नारीने नागणी सभान लेखी तेणीनो संग सर्वथा तजयो जोइए. नारीना संगथी निश्चे कलंक चढे छे.
(१४३ ) मुमुक्षुजनाए समरस भावमा झीलता थकां शास्त्र अवगाहन कर्या करणे जोइए.
(१४४ ) मुमुक्षुजनोए अधिकारीनी हितशिक्षा हृदयमा धारीने स्वशक्तिने गोपव्या विना तेनुं यत्नथी पालन करवु जोइ५. कोई रीते अधिकारीनी हितशिक्षानो आनादर नज करवो जोइए.
(१४५ ) मुमुक्षुजनोए क्षुधादिकनो उदय थये छते गुवादिकनी संमती लइने निर्दोष आहार पाणीनी गवेषणा करी, तेवो निदोष आहार प्रमुख मळे तो ते अदीनपणे लइने, गुर्वादिकनी समीपे आवीने तेनी अलोचना करी गुर्वादिकनी रजाथी अन्य मुमुक्षु जननी यथायोग्य भक्ति करीने लोलुपतारहित लावेलो आहार संयमना निर्वाह माटे वापरता मनमां समभाव राखी तेने वखाण्या के खोज्या विना पवित्र मोक्षना मार्गमा पुनः कटिबद्ध थइने विशेषे उद्यम करवो जोइए.
(१४६ ) मुमुक्षुजनोनी शास्त्र आज्ञा मुजब पीने करवामां आवती माधुकरी भिक्षाने ज्ञानी पुरुषो ' सर्व संपत् करी ' कहे छे.
(१४७ ) मुमुक्षुजनानी शास्त्र आज्ञा विरुद्ध वर्तीने करवामां आवती भिक्षाने ज्ञानी पुरुषो 'बलहरणी' कहीने बोलावे छे.
(१४८ ) केवळ अनाथ अशरण एषा अधिळा पागळा विगेरे दीनजनोनी भिक्षाने ज्ञानी पुरुषो 'वृत्ति भिक्षा' कहीने बोलावे छे.

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