Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company
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(९६)
शल्यरुप शोक करवोज जोइये ? तेवा दुःखदायी शोकथी शुवळवार्नु छ ?
(-१०५ ) ममता विना शोक थतो नथी. ज्ञान वैराग्यथी ते ममता घटे छे. सम्यग्ज्ञान या अनुभव ज्ञानथी मोहनी गाठ तूटे छे अने हृदयनुं बळ वधवाथी, घटमा विवेक जागबाथी शोकादिकने अंतरमा पेसवानो अवकाश मळतो नथी.
(१०६ ) कफना विकारवाळ नारीनु मुख क्या अने अमृतथी भरेलो चंद्रमा क्या ? ते बने वच्चे महान् अंतर छतां मंदबुद्धि एवा कामी लोको तेमनु ऐक्य सरखापणुंज माने छे.
(१०७) हाथीना कानी माफक चपळ-क्षणवारभां छेह दे एवा विषय भोगने परिणाम माठा विपाक आपवावाळा जाण्या छता तजी न शकाय ए केवळ मोहनीज प्रबळता देखाय छे,
(१०८ ) एक एक इंद्रियनी विषय लंपटताथी पतंगीया, भमरा, माछला, हाथी अने हरण प्राणांत दुःख पामे छे तो एकी साथे पाचे इंद्रियोने परवश पडेला पामर प्राणीयोनु तो कहेज ?
(१०९ ) जेम इंधनथी अग्नि शात थतो नथी, परंतु ते वृद्धिज पामे छे तेम विषय भोगथी इंद्रियो तृप्त थती नथी, परंतु तेथी तृष्णा वधती जाय छे. अने जेम जेम विशेष विषय सेवन करवा जीव ललचाय छ तेम तेम अग्निमा आहूतिनी पेरे कामाग्निनी वृद्धि थया करें छे,
(११० ) अनुभव ज्ञानीयोए युक्तज कथु छे के ज्ञान-वैराग्यज परममित्र छे, काम भोगज परमशत्रु छे, अहिंसाज परम धर्म छे अने नारीज परम जरा छे ( केमके जरा विषय लंपटीनो शीघ्र पराभव करे छे.)
(१११ ) वळी युक्तज कयुं छे के तृष्णा समान कोइ व्याधि नथी अने संतोष समान कोइ सुख नथी.
( ११२ ) पवित्र ज्ञानामृत या पैराग्य रसथी आत्माने पोषवाथी

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