Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company
View full book text
________________
(८२) भजता नथी. सुविवेकी जनाने तो ते वैराग्यनी वृद्धि माटेज थाय छे.
(६) स्त्रीयो कपट करि गद्गद् वाणीथी बोले छे, तेने कामांधजनो प्रेमक्ति तरीके लेखे छे. विवेकी हंसो तेथीं ठगाइ जता नथी.
(७) ज्यां सुधी आहारनी लोलुपता तजी नथी, सिद्धांतना अर्थरुपी महौषधिनुं सम्यग् सेवन कर्यु नथी, अने अध्यात्म अमृतन विधिवत् पान कयु नथी, त्या सुधी विषय ज्वरनु जोर जोइ५ तेवू चतुं नथी. विषय तापनी शांति भाटे रसलौल्पना त्याग पूर्वक सिद्धांतसार चूर्ण तथा तत्वामृतनुं सभ्यम् सेवन करवुज जोइए.
(८) भारयौवन वयमा कामने जय करनार धन्य धन्य छे.
(९) जेणे जाणी जोइने कामिनीने तजी छे, अने संयमश्रीने सेवी छे, एवा सुविवेकी साधुने कुपित थयेलो पण काम कई करी शकतो नथी.
(१०) प्रियाने देखताज कामज्वरनी परवशताथी संयम-सत्त्व क्षीण थइ जाय छे, पण नरकगतिना विपाक सामरताज तत्त्वविचार प्रगट थवाथी गमे तेवी व्हाली वल्लभा पण विष जेवी भासे छे.
(११) जेमणे यौवन वयमा पवित्र धर्म धुराने धारी महाव्रतो अंगीकार कर्या छे, तेवा भाग्यशाली भन्योथीज आ पृथ्वी पावन थयेली छे.
(१२) कामदेवना बंधुभूत वसंतने पामीने स वनराजी पण विविध वर्णवाळी माजरना मिषथी रोमांचित थयेली लागे छे, तमा सिद्धांतना सारनुं सतत सेवन करवाथी, जेमनु मन विषय तापथी लगारे तप्त थतुं नथी, एवा संत सुसाधु जनीनेज धन्य छे. . (१३ ) स्वाध्यायरुपी उत्तम संगीत युक्त, संतोषरुपी श्रेष्ठ पुष्पथी मंडित, सम्यग् ज्ञान विलासरुपी उत्तम मंडपमा रही शुभ ध्यान शय्याने सेवी, तत्त्वार्थ बोधरुपी दीपकने प्रगटी अने समता

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145