Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 86
________________ (७८) 'इतनेसे ज्यादा मेरे स्वभोगार्थ न चाहिये' ऐसा नियम रखे और प्रमाणसे ज्यादा हो सो शुभ धर्म मार्गमें व्यय कर देवे, उस्को परिग्रह प्रमाण व्रत कहते हे. __ प्रश्न १९ यह पांच अणुव्रतके शिवाय गृहस्थको दूसरे कोनसे व्रत होते है ? उत्तर तीन गुणत्रत और चार शिक्षाव्रत यह मिलकर बारह व्रत होत है. प्रश्न २० तीन गुणव्रत कोनसे कोनसे है ? उत्तर दिशा (जाने आनेका ) प्रमाण, भोगोपभोग, और अनर्थ दंड यह तीन गुणव्रत संज्ञा धारक है ! प्रश्न २१ दिशा प्रमाण व्रत किस्को कहते है ? ___उत्तर--पूर्व, पश्चिम उत्तर दक्षिण यह चार दिशा और ईशान, वायव्य, नत्य, अग्निय यह चार विदिशा, और उपर नीचे जाने आनेका संबंध धर्म कार्य शिवाय अपने कार्य निमित्त जाने . आनेका प्रमाण प्रतिबंध रखे उनको दिशा प्रमाण कहते है, प्रश्न २२ भोगोपभोग विरमण व्रत किसको कहते है ? । उत्तर , पंद्रह कर्मादान महापाप व्यापारका त्याग करे, और चौदह नियम धारण कर उस्को भोगोपभोग विरमणव्रत कहते है. प्रश्न २३ अनर्थ दंड विरमण किरको कहते है ? उत्तर-- पाप कार्यके साधनभूत-कुल्हारा, हल, मूशल, चक्की वगैरेः तैयार करके दूसरेको न देवे, पापका उपदेश न देव, आतरोद्रध्यान न ध्यावे, नाटक पटक-खेल तमासे भांडोकी नकल वेश्याओंका नाच न देखें, और हिंसक-मासाहारी जीवोका व्यापार अर्थ न पोषण करे अर्थात् पापी जीवोंको न पाले उस्को अनर्थदंड

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