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(७४) परंतु सुनार बोला कि यद्यपि अनर्थकारी है तथापि अर्थ-द्रव्य तो है न ? इस लिये जरा मुझसे दूर पड. ऐसा कहते ही सुवर्ण पुरुष एकदम नीचे गिर पडा, सुनारने उठकर उस सुवर्ण पुरुषकी अंगुलिया । काट ली और उसे वहा ही जमीनमें गढा खोदकर उसमें दबाकर कहने लगा कि, इस सुवर्ण पुरुषसे अतुल द्रव्य प्राप्त किया जा सकता है, इस लिये यह किसीको न बतलाना. बस इतना कहते ही पहले तीन जनोके मनमें आशाकुर फूटे. सुबह होनेके बाद चारोमेंसे एक दो जनोको पासमे रहे हुये गांवमेंसे खान पान लेने के लिये भेजा. और दो जने वहां ही बैठे रहे. गावमें गये हुवोने विचार किया कि, यदि उन दोनोंको जहर देकर मार डालें तो वह सुवर्ण पुरुष हम दोनोंकोही मिल जाय, यदि ऐसा न करें तो चारोंका हिस्सा होनेसे हमारे हिस्सेका चतुर्थ भाग आयगा. इस लिये हम दोनो मिल कर यदि भोजनमे जहर मिलाकर ले जाय तो ठीक हो. यह विचार करके वे उन दोनोके भोजनमें विष मिलाकर ले आये. इधर वहांपर रहे हुए उन दोनोने विचार किया कि हमें जो यह अतुल धन प्राप्त हुवा है. यदि इसके चार हिरो होगे तो हमे बिलकुल थोडा थोडा ही मिलेगा, इस लिये जो दो जने गावमें गये है उन्हे आते ही मार डाला जाय तो सुवर्ण पुरुष हम दोनोंको ही मिले. इस विचारको निश्चय करके बैठे थे इतनेमें ही गावमें गये हुए दोनो जने उनका भोजन ले कर वापिस आये तब शीघ्र ही वहा दोनी रहे हुए मित्रोने उन्हें शस्त्र द्वारा जानसे मार डाला. फिर उनका लाया हुवा भोजन खानेसे वे दोनो भी मृत्युको प्राप्त हुये. इस प्रकार पाप ऋद्धिके आनेसे पाप बुद्धि ही उत्पन्न होती है अतःपाप बुद्धि उत्पन्न न होने देकर धर्म ऋद्धि ही कर रखना जिससे वह सुख दायक और अविनाशी होती है.