Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 77
________________ (६९) पास है फिर दुसरी बात करना. हम कुछ तुम्हे फसाना नही. चहाते परंतु लडकीका द्रव्य रखना सर्वथा अनुचित है, इस लिए अन्य विचार किये विना उसका धन ले आओ. ऐसे वचन सुनकर विचारा शेठ लज्जासे लाचार बन गया शरममें ही उठकर हजार सुवर्ण मुद्राओकी रकम लाकर उसने पंचाको सोपी. पंचोने विलाप करती हुई वाईको बुलाकर वह रकम दे दी, और वे ७० कर रास्ते पडे. ___ इस बनावसे दूसरे लोगोमें शेठकी बडी अपम्राजना हुई. जिससे विचारा गेठ पडा लज्जित हो गया और मनमें विचार करने लगा कि हां! हा ! मेरे घरका यह कैसा फजीता ! यह रांड ऐसी कहांसे निकली कि जिसने व्यर्थ ही मेरा फजीता किया और व्यर्थ ही द्रव्य ले ' लिया ! इस प्रकार खद करता हुषा शेठ परके एक कोनमें जा बैठा. अब उसे दुसरोंकी पंचायत में जाना दूर रहा दूसरोंको मुह बतलाना या घरसे बहार निकलना भी मुश्किल हो गया. घरमें कुछ शांति हो जाने बाद के पास आकर भाई बहिन और माताके सुनते हुए विचक्षणा बोली-क्यौ पिताजी ! "यह न्याय सच्चा या झूठा ? इसमें आपको कुछ दुःख होता है या नहीं ? " शेठने कहा. इससे भी बढकर और क्या अन्याय होगा ! यदि ऐसे अन्यायसे भी दुःख न होगा तो वह दुनियाम ही न रहेगा. विचक्षणाने हजार सुवर्ण मुद्राऑकी थेली लाकर पिताको सोंपी और कहा - पिताजी ! मुझे आपका द्रव्य लेने की जरुरत नहीं, यह तो परीक्षा बतलानी थी कि आप न्याय करने जाते हैं उनमें ऐसे ही न्याय होते है या नहीं ? इससे दूसरे कितने एक लोगोंको ऐसा ही दुःख न होता होगा? इससे पंचाको कितना पुण्य मिलता होगा ? मै आपको सदैव कहती थी परंतु आपके ध्यानम ही न आता था इस लिये मन परक्षिा कर दिखलानेके लिये यह सब कुछ बनाव किया था, आपका द्राने जाते हैं को ऐसा ही में आपकार

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