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करनेवाली - वृद्धि
करनेहारी - पालन करनेवाली - यावत् एकांत सुखकारी जयणा ही है. जयणा रहित चलनेवाले, खडे रहनेवाले, चेठनेवाले, सोनेवाले, भोजन करनेवाले या भाषण करने-बोलने-वाले उन उन चलनादिक क्रिया करनेमें त्रस या स्थावर जीवों की हिसा करते है जिस्से पापकर्म बांधते है. उनका विपाक कटु होता है. वास्ते सुज्ञ विवेकी सज्जनोको वो वो चलनादिक क्रिया करनेके - वख्त ज्यौ ज्यौ विशेष जयणा समाली जाय त्यौ वर्तन - रखना वही हितकारक है; क्यौं कि सभी जीवोंको अपने जीव समान गिनता - हुवा जो किसी भी जीवको दुःख न देनेकी बुद्धिसे समस्त पापस्थान त्याग कर आत्मनिग्रह करता है वही महात्मा कर्म नहीं बचता है. अन्यथा अपने कल्पित क्षणिक सुखकी खातिर नाहक अनेक निरपराधि जीवों के प्राणों को हरण करता हुवा, अजयणासे वर्तन चलाता हुवा वो जीव भारीकर्मी होता है यानि बडे भारी कर्म बांधता है, कि जो कर्म उदय आने से बहुतही कटुरस देता है. दृष्टांतरूप कि परजीवों के संरक्षण के वास्ते मुनिमहाराज रजोहरण ओधा, तथा सामायिक पोपधादिक व्रतामे श्रावक चरवला, और इन सिवाय के गृहस्थ लोक कचरा कस्तर दूर करनेके वास्ते बुहारी रखते है; मगर वे सुकोमल होवे तब और हलके हाथोंसे उन्हों का उपयोग करनेमें आवै तब तो जीवरक्षारुप प्रमार्जना सार्थक हो जयणा 'पालन करने में मददगार होती है; लेकिन उस बिगर नही होती. आजकल अज्ञान दशासे मुग्ध जीव जमीन साफ करने के वास्ते अच्छे सुकोमल नरमासवाले उपकरण न रखते बहुत करके खजुरी वगैरः की तीक्ष्ण वुहारीयों का उपयोग करते हुवे मालुम होते है कि जो विचारे एकेंद्रिय से लगाकर त्रस जीवो तकके संहार होनेके लिये भारी शस्त्र हो पडता है. अपनको एक काटा लगनेसे दुःख होता है, तो