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४२ उपकारी जनका उपकार भूल नहि जाना माता, पिता और मालिकका उपकार अतुल माना जाता है. यह सबसे धर्मगुरुका उपकार बेहद है. तिन्हका उपकारका बदला पूर्ण करनेको सञ्चा उपाय यह है कि तिन्हको जरुरतके समय धर्ममें मदद देनी ऐसा समझकर वैसी उत्तम तक मौका सुजनको खो देना नहि चाहीये. क्यों कि, गया वरूत फेर हाथ आता नहि.
४३ यथाशक्ति जरूर पर दुःखमंजन करना दीन, दुःखी, अनाथ जनको यथा उचित सहाय देकर तिन्होंको आश्वासन देना.
और कुछ न बन सके तो योग्य वचनसेभी तिन्होंको संतोष देना. तिन्होंका जीवात्मा कोइ प्रकारसे दुःखी हो तैसा कुछ करना या शब्दोचारभी करना नहि. और तिन्होंको टिगमगाकर देना नही. जलदी अपनी शक्ति मुजब दे देना. ___४४ कार्यदक्ष होना--अभ्यास बलसे कोइभी कार्यमें फिकरमंद नहि होके तिरकों पार पहोंचानेमें पूर्ण हिम्मतवंत होना. आरंभ किये हुवे कार्यमें कितनेभी विन आ जाय तोभी हाथ धरे हुवे कार्यमें निडरतापूर्वक अडग रहकर कार्य सिद्ध करना.
४५ मिथ्वात्व सेवन करना नहि--राग द्वेषसे कलंकित हुवे कुदवोंका, तत्वसे अज्ञ मिथ्या कदाग्रही कुगुरुका और हिंसादि दूषणोसे सहित कुधर्मका सर्वथा त्याग करना, अज्ञानमय होळी प्रमुख मिथ्या पर्वोकामी अवश्य परिहार करना, मिथ्या देव देवीकी मानत नहि करनी. शासन भक्त सुरवरोंकी सच्चे दिलसे आस्था रखनी. क्यों कि, आपत्तिके वस्त भक्तजनोंको शासनदेवही सहायभूत होते है.
४६ शंका खा धारण करनी नहि , सर्वज्ञ वीतराग परमा माके प्रमाणभूत वचमनमें कदापि शंका करनी नहि. क्योंकि,