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स्व परको हित होता है अन्यथा उन्मत्त भाषणसे तो अवश्य अपना और दूसरेका अहितही होता है.
३७ समस्त अपने कुटुंबको धर्मचुस्त बनाना (धर्मस्त करने में योग्य यत्न-प्रयत्न उपयोगमें लेना.) - उपकारी कुटुंबियोके उपकारका दूसरी रीतिसे बदला दे सकते नहि, मगर धर्मके संस्कारी करनेसे उन्हके उपकारका बदला अच्छी तरह से पूर्ण कर सकते है, और धर्मके संस्कारी होनेसे वोह सब प्रकारसे अनुकूलवर्ती होते है.
३८ बिना विचार किये कोइभी कार्य करना नहि साहस कार्य करनसे कोइ वरूत जीव जोखममें झुक जाकर महान् शोकातुर होता है, इस लिये तिका अंतका परिणाम विचार करकेही घटित कार्य करनमें तत्पर रहेना.
३९ विशेष ज्ञान संग्रह करना सत्यतत्व जानने के लिये जिज्ञासा हो तो अंध क्रियाका त्याग करके हरएक व्यवहारक्रियाका परमार्थ समझकर सत्य-निष्कपट क्रिया करने के लिये पूर्ण आदर करना.
४० हम्मेशा शिष्टाचार सेवन करना महान् पुरुषोंने सेवन किया हुवा मार्ग सर्व मान्य होनेसे अवश्य हितकारी होता है, इस सबबसे स्वकपोलकल्पित मार्गको छोडकर सन्मागे सेवन करना. क्यों कि 'महाजनो येन गतः सपन्थाः'
४१ विनयवृत्ति-नम्रता धारण करनी--सद्गुणी वा सुशील सज्जनोंका उचित विनय करना. सद्गुणी जनोंका कभीभी अनादर करना नहि. क्यों कि विनय सोही समस्त गुणोंका वश्यार्थ प्रयोग है. धर्मका मूलभी विनय है. विनयसेही विधा फलीभूत होती है. और विनयसेही अनुक्रम करके सर्व सपत्ति संपादन होती है. .