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वीतराग, परमात्मा ( जिस्का नाम चाहे सो हो, मगर गुणमें सर्वोस्कृष्ट हो सो ), तिन्हीकाही अनन्य भावसे शरण ग्रहण करना. - २० शुद्ध गुरुकीही सच्चे दिलसे सेवा करनी आप निर्दोप, पांतराग शासनको सेवने वाले और अन्य आत्मार्थी सज्जनोको ऐसाही निर्दोष मार्ग बतानेवाले क्षमा, मृदुता, सरलता अने निलमितादिक श्रेष्ठ गुणोको भजनेवाले भिक्षु, साधु, निग्रंथ, अणगार मुमुक्षु-श्रमणादिक सार्थक नामसे पिछाने जाते मुनिगणही शुद्ध गुरुबुद्धिसे सेवन करने योग्य है. ___२१ शुद्ध सर्वज्ञ कथित धर्मकाही समझकर सेवा करनी दुर्गतिसे बचाकर सद्गति प्राप्त करानेवाला, स्यावाद अनेकात मार्ग मध्य शुद्ध श्रद्धा रखकर सेवा करनी दोष मात्रको दलन करनेम समर्थ महावत सेवन करनेरुप प्रथम मुनीमार्ग. उस्के अभावसे अणुव्रत सेवन करनरुप दुसरा श्रावक मार्ग, और महावतादि सम्यक् पालनमें असमर्थ होते भी दृढ शासनरागसे शुद्ध भार्ग सेवन करनेवालोंका बहोत मान्यपूर्वक सत्यतत्व कथन होनेसे तीसरा संविज्ञ पक्षीय मार्गको आत्मार्थी सज्जनीन दृढ आलंबन योगसे जलदी भव समुद्रसे पार करनेवाला समझकर सेवन करनाही योग्य है.
२२ शुद्ध देवगुरु अने धर्मकी सेवा करने लायक होना चाहिये--(तैसी योग्यता प्राप्त करनी चाहिये. ) अयोग्य-योगता रहित मलीन आत्मा शुद्ध देव, गुरु धर्मकी सेवाका अधिकारी नहि है.
२३ आत्माकी मलीनता दुर करनेको मथन करना अपने मन वचन और शरीरको नियममें रखनेसे आत्मा निर्मळ हो सकता है.
२४ शूद्रता त्याग देनी नीच मलीन बुद्धि त्याग कर