Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
View full book text ________________
आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२५३-२७५], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १९७-२०१]
(०१)
| वादनिषे
धादि
प्रत वृत्यक [१९७२०१]
श्रीबाचा
FIDAIन, किंच-रागदोसकरो वादो, एवं जहा जहा उत्तरं भवति तहा तहा ठाएयव्यं, अवा सुट्ठ विसद्धियं हेउस्स इमं उत्तरं दायव्यशंग मूत्रवृणिः
A कई भवां अम्हेहिं सद्धिं पावदिट्ठी विरोधं इच्छिह , कहं पावदिट्ठी, नणु सचत्य संमतं पावं, सव्वसत्थे तिण्डं तिसट्ठाणं पावा॥२५६॥
| दियसयाणं, तेसिं सम्वेसिं पुढविआउतेउवाउवणस्सतिआरंभे कयकारियअणुमोयियातिहिति अणुण्णाओ, तेण सम्बत्य संमयं अप्पियं | भवतां तेण तदारंभ ण करेतु, अहवा सवपगारेहिं सम्मतं, यदुक्तं भवति-अपडिसिद्ध, हिंसं ताव एगिदियघाता उद्देसियभोइत्ता।
य णवभेदेण ण परिहरंति, अहवा अदिण्णमादियंति जाव परिग्गई, वायाओ विजुज्जति, अतो सम्बासवपगारेहिं तं तेसिं पावं | | अच्छतं संमतं जेण तं न पडिसिद्धति, तमेव उपादिकम, तमिति त अण्णेसि ज समयं उक्सामिगादि, अतिरतिकमणादिसु,।
जं भणित-धर्म उविच्च-अतिकम्म, एस महाविवेगो विवाहिते एस इति जो उचो, महमिति मम, अहवा महंतणएण सता | विवेगेणं, विवेगो मोक्खो, विमोहायतणं व एतं वट्टति, विविहं आहितो वियाहितो, तं कई ?, अहं सब्बत्थ सबभावेहिं अपडी| सिद्धअस्सवदारेहिं तं जायं अतिकतो तेहि सभावमवि करिस्सामि, भणंतु वा सोतारो, किं ताव आरंभत्थिनेणं एतेहिं सद्धिं अस
माणेहिं संकहा कायब्वा ?, ण कार्यव्या इति, एवं असमणुनविवेगं करेति, अहवा गिहिणोऽवि असमणुण्णा चेव धम्मावट्टियस, तेज । उवदेशः एसो, सव्वत्थ सांमत्यं सम्वेसि, अविरताणं संमयं हिंसादि तमेव उवर्कम, तमिति तं हिंसादि पावकम्मपवनो असंते | उवातिकम एस मम विवेगे वियाहिते एम अपमणुण्ण विमोहाययणमिति यति, अहवा सत्थरांमनं अपितं तं च उपाति
तो एस महं विवेगे अक्खाए, यदुक्तं भवति-अमोक्खो, जेग वा विमुचति, सो व मोक्खो, सो य तबो संजमो वा, अब कह। | सम्वेसि अनउत्थियाणं अहवा महा पहाणो संपावए? कई च सव्वे अन्नाणी मिच्छादिट्ठी रिती अतवस्सी ?, णणु तेवि अह
॥२५६॥
दीप अनुक्रम [२१०२१४]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[268]
Loading... Page Navigation 1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399