Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
View full book text ________________
गम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [२,३], नियुक्ति: [२९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १०-२१]
(०१)
ध्ययन
श्रीआचा रांग मूत्र
चूर्णिः ||३३३।।
प्रत वृत्यक [१०-२१]
| भणिता, इमे अन्ने-पवयणादी, गाहावई अगारिओ वा, परिवाया काबलियगादी, परिवायायो तेसिं चेत्र भोईयो, वासगिम्हरी-D| पिंडैपणा| कादीसु संखडीसु, एवंपि अगारीओवि, माहेस्सरसिरिमालउज्जेणीसु एगभ एगवत्ता एगचरित्ताबा, सम्बंमि भवा वा, सोंडे | विगडं चेव पिबंति, पादुः-प्रकाशने प्रकाशं पिवंति, रे प्रकाशे, पीवितं प्रकाशीभवति, भो! ति शिष्यामन्त्रगं, व्यामिश्रं नामा तेहिं पासंडगिहत्थेहि, अवा वे सुराओ, अहवा सिधुं व सुरं च अणुकंपया संजतं पाएज्जा, पडिणीययाय पाएज्जा जा उड्डाहो । | भवतु, मत्तगदोसा गाएज चा नवेज वा चमेज या, मत्तेण य पडिस्सओ ण गविट्ठो, हुरत्था णाम बाहि विगालो य जातो, को वा मत्तेल्लगस्स देति, गतिए संतस्सवि, तेहि चेव सम्मिसभावं पगतएल्लर आपेज्जेत, अनमणो णाम ण संजतमणो, सब्बेते ।। विप्परिपा, स० सयओ णाम अचेतो आतपरउभयसमुढेहिं दोसेहि, इत्थीविग्गहे वा विग्गहगहणं मत्तगपरीवत् , तत्रापि ग्रहण | दृष्ट, किली वो जाम नपुंसओ, एते गेण्हेज, पियधम्मेवि न देसो, किमंग पुण मंदधम्मे !. एवं वा बयान-आउसंतो! समणा एयाओ | संझ विगालो रत्तीवि परिचरियब्वा, गामणियंतिथं गाममभासं, कण्हुइ रहस्सितं कम्हिवि रहस्से, उच्छ् अक्खाडे वा अन्नतरे वा पच्छण्णे मिहुणस्स सहयोगे च, पवियरणं पवियारया, आउट्टामो कुचीमो, एगतीया कोई विधम्मोवि साइजेज, सातिजणा समणुजाणणा, अकृत्यमेतत् , जात्वा आदाणत्ता, सासंति विजंतो, प्रत्यवाया इह परलोगे य, तम्हा णो अभिः अण्णयरे संखडी णिसम्म, समर्थ धावति, उम्सुगभूतो सज्झायादीणि ण करेति, धुवा अस्थि णत्वि, होंतीएवि लंभो हुज वा ण वा, लम्भमाणोवि वेला फिद्विा , णो संचाएति-न शक्नोति इतराइतराई-उच्चनीयाणि जाणि पुनमणियाणि समुद्दाणतातं सामुदाणियं, फासुगं उम्ग| मादिसुद्धं एसणीयं, एसियं फासुगमेव एसितं, वेसियं णाम जहा वेसिवाणुरूवं, विरूवत्थे रयणे वाण जोएति, केवल कवलिते, ॥३३३॥
दीप
अनुक्रम [३४४३५५]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[345]
Loading... Page Navigation 1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399