Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यक
[८७
११०]
दीप अनुक्रम
[ ४२१
४४४]
भाग-1 "आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [२], उद्देशक [३], निर्युक्ति: [ ३०४...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ८७-११०]
श्रीआचा
रांग सूत्र चूर्णिः || ३५३ ॥
परिणायं जाय अणुजाणसि ता ता चैव वसिस्सामि, सो आउतो भण्णइ अहं पुण्यं दिज्जिस्सामि जाब आउसो ! जाव तुमं जाव साहम्मियति जत्तिया तुम इच्छसि जे वा तुमं भणसि, णामेणं अणुसुओ मोतेगं विसेसिओ, कारणे एवं णिकारणे णट्ठायंति, | तेण परं जति तुमं उचविजहिसि ण वा तब रोए, इह हि उवस्सओ वा मजिहिति, परेगवि, वाहरण्णामो णामो गोनं जाणेता, णामेणं उस्सुओ गोतेणं विसेसितो, भत्तपाणं ण गिष्हति सागारिय सागारितो, पण्णो आयरिओ, अवा विदू जाणओ, तस् पण्णयस्स ण भवति, निष्क्रमणं प्रवेश संकट इत्यर्थः, वायणपुच्छणपरियडूणधम्माणुओगचिंताए, सागारिए ण ताणि सकंति करे, तम्हा द्वाणादीणि ण कुज्जा, मज्झेण गंतुं वत्थए अकोसमादी, सिणाणादी सीतोंदण पंच आलावगा सिद्धा, णिगिणाजग्गाओ ट्टियाओ अच्छंति, णिगिणातो चलिअंति, मेहुणधम्मं विभवेति ओभासंति अविरतगा साहुं वा तवरिंस, मेहुणपत्तियं चैव अनं किंचि गुहा, आदिष्णो णाम सागारियमादिणा सलाखा, सचितं कम्म इति पढमं संथारगं ण गेण्हे, वितिय अप्पंड गुरुवं तंगि ण गेण्डति, ततियं अप्पंडे लहुयं अपाडिहारियं न गिण्हति चउत्थं अप्पंडे लहुगं पाडिहारियं णो, अहावच्चं न गेण्हेज, पंचमं अप्पंड लहुगं पाडिहारियं अहावचं पडिगाहिज, लहुओ जो वीणागहणे आणिञ्जति, लहुओ आहावच्चे, पाडिहारिओ अट्ठ भंगा, पढमो पसत्थो, इचेयाई आययणाई आयतपाणि वा संसारस्य अप्पसस्थाई, पसत्थाई मोक्खस्स, पडिमा प्रतिज्ञा प्रतिपत्तिर्वा उद्दिस्सित णामं गेण्हेत्तुं जहा इकडं वा इकडाकयारादिके, कढिणो किं धम्मादी वासरते, जंतुयं तणजाती, परओमंडओ, मोरगी तणजाती वा, तणं सव्वमेव जंकिंचि, कुसा दम्भा, कुच्चते सण्डए दब्बे, बच्चए सिन्धु, पलाल पलालमेव, एतेसिं | माणसे गिव्हंति जत्थ भूमी ओमिजेति, उदिट्ठे कतार छिंदितु आपोज, गते ण पेहा विमुद्धारा, पेहा णाम पिक्खिन्तु एरिसगं
शय्याध्य०
[365]
॥३५३॥
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
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