Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [७], उद्देशक [२], नियुक्ति: [३१६-३१९], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १५५-१६२]
(०१)
अवग्रह
प्रत वृत्यक [१५५१६२]
श्रीआचा0 उवणिमंतेज, सईपिप्पलगमादी, अणंतरहिया सब्वे, सव्वे आलावगा आलावगसिद्धा इत्यवग्रहप्रतिमायाः प्रधमोद्देशकः।। रांग सूत्र-lil उग्गहे य दब्बशेषं, से आगंतारेसु वा आरामगारेसु वा 'पुच्चभणियं तु भण्णति.' किं पुण तत्थोवग्गहे समणा पंच, माहणा !
चूर्णिः धीयारा, इंडए या छत्तए वा, वाशब्दात् हत्थेण वा किंचि उवगरणं, णो अंतोहिंतो बाहिं णीणिश्रा, सुन वा ण उहवेति, उद्वेहि | ॥३६७||
| अन्हेहिं एस वसही लद्धा, णो तासि अप्पत्तियं करिजा, एरिसए कारणट्ठिया उच्चारपासवणे जयणाए, क्षेत्र संघाइए वेरत्तियं करेंति, अंबवणे ण वट्टति, दारुयअडिमादी दोसा, कारणे ओसहकले सडो मग्गिओ भणति-भगवं ! अंबवद्धादे कस्मवि गंधेण। चेव विणस्सति वाहीति सम्बईए गिलागो, जहा वा हरीडयीए गंधेग विरिवति एर्गयाए किल, सअंडमादीण कप्पति, अप्पंडादी कप्पति, भत्तए अद्धं, पेसी चउभागो, दोडगं छल्लिमोयगं, गिरो अंबसालओ, कोंकणेसु अतिरिच्छच्छिन्ना वकविच्छिन्ना अन्यो| च्छिन्ना वा जीवेण विणिभिन्नं, उक्खुवणेवि अंतरुच्छुगा पच्चसहितं, पन्चरहियं खंडं, चोदगंच्छोति वा, मोदगछोडियतं उच्छ्
सगलगं, छल्ली उच्छुसगलगं, चकली चकलिरेव, लसुणेवि चोइओ, वाहिकारणे लमुणेवि भासियचं, इकडाडि तण्णो अच्छिदिय २ |विच्छिदिय २ परिभुजिय २ सत्त पटिमा तआतिया उग्गहमम्गणा सबा सत्तण्हं अम्भितरा, तहा पिंडमग्गणा पिंडेसणाणि, एवं
सवपडिमासु पढमा संभोइयाण सामण्णा, वितिया गच्छवासीणं संभोइयाणं, ततिया अन्नसंभोइयाणं, कारणे तेण लभंति, अहाVलंदिया वा आयरियस्स गिण्हंति, सुत्वत्थावसेसो आवनपरिहारियोवि गेहति, कारणे तच्चा पडिमा, चउत्थी गच्छे ठिओ जिणकप्पा
तिपडिकम्मं करेंतस्स, पंचमा जिणकप्पियस्स पडिमाए पडिवण्णमस्स बा, पच्छिमाओदोवि जिणाणं, छटो अंतेहितो बाहिं णाणेयव्वा वाहिताउ वा अंतो नेयब्बा, अलाभे उकुटुगणेसजिओ, समिती अहासंथर्ड तम्मि व संस्थिता अंतरवादी वासं, सुयं मे आउसं!
॥३६७॥
दीप अनुक्रम [४८९४९६]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
(प्रथम चूलिकाया: सप्तम-अध्ययनं "अवग्रह प्रतिमा, द्वितीय-उद्देशक: आरब्ध:
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