Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [२], सप्तैकक [४,५], उद्देशक -,नियुक्ति: [३२३-३२४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १६८-१७१]
(०१)
S
प्रत वृत्यक [१६८१७१]
श्रीआचा
D| उज्जुहियाणि गावीओ उवद्धणातो अडवितेणं उज्जहंति, णिज्जूहियाणि णिखोडिअंति गावीओ येव जोइति वा, मिहो जुहिगाणि, सप्तसप्तकाः रांग सूत्र
| परियाणगं च उंचराणं, हयाणीयाणि वा अणियम्गहणा चत्तारिवि अणियदंशणाणि, एगो वा एगपूरिसं बा बझं, नवरं सेहस्स चूर्णि दरिसिअति थिरीकरणत्थं, ओप्पाइतावि केवलपुस्तकवाचणाणि, माणुस्माणि याणि जत्तासुहवाणि, जागाणं गोणाणं च जह कंव||३७१॥ लसंवला, अहवा माणुस्साणं चेव एवं विहं जामणविआर्हि गामिजंति रेखा, अहवा गट्ठ सिक्खाविन्ताणं अंगाई णामिजंति, जोई-DA
सत्थे कहियाई कव्वाई, धण्णाई वा पारमिता गधेतुं, कमवित्ताण पाउरणाणि कीरति, तं जाणरुक्खाई मग्गो, दटुं सवरभासाकलहाणि जहा सेंधवाण भासाओ, वेराणि गामाईणं, सग्गामा वा, जणवयाणि चेव जणायाणि जत्थ सभामाईसु जगवया बढुति, कहकम्माणि वट्टाति सरूवायारस्स वा पोत्थगा, कहिगादी, चितागं लेप्पारमादी, गंथिमाग पुष्फमादी, वटीसम विहागर्ग, पूरिमो रहो, संघातिमो कंचुगो महतो । से भिक्खू बा २ इच्छा ण बा, से भिक्खू वा २ महामहाणि बहुरयाणं ससुरउमादि, बहुणडाणि जहा इंदमहे, सब्वतालायरा बहुसढाणि, सरक्खगतला मनहजागएहि, मिलक्खूणि आभासियाणि, ण वा तेसिंग
परिच्छि अंति। से भिक्खू वा २ इहलोइयं मणुस्साणं पारलोइंग दियगतादी, अहना जहा धम्मिलो इहलोइएसु परलोइएमु | IV संवदंतो (वंभदत्तो, सेसं कंठथं, एवं सदाइपि संखादीणि तताणि वीणावचीसमुग्घायादीणि वितताभिभादिकणाईलउलकुटा सुसिराई | | सपञ्चगादिपव्वादीणि सई सुणेन्ताणं, जतो जाति पिक्खतो वणिजंतेसु चारगादीणि जाति । पंचमं सत्तसत्तिकग समत्तं॥
परकिरिया परेण कीरमाणे कम्मं भवति, किरिया कम्म, अध्यात्मकं तस्स २ करेंतम्स, जति सात कजज साएति, अध्या-16 | रमस्थिता अम्भत्धिया, संसयता संजोयो भवति तत्थ अमत्थेणं, ततो कर्मसंश्लेषो भवति, तम्हा णो सादिजेजा, सा य इमा ॥३७१७
दीप अनुक्रम [५०२५०५]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: द्वितीया चूलिकाया:षष्ठा सप्तसप्तिका- 'परक्रिया-विषयक'
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