Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 369
________________ आगम भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [३], उद्देशक [१], नियुक्ति: [३०५-३१२], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १११-११९] (०१) AMI भीयाचा रांग पत्र चूर्णिः ॥३५७१ प्रत वृत्यक D| अहवा एकसि अप्पतरो, बहुसो भुजपरो, तिरिच्छसंपातिम जाणित्ता एगंतं एगायतं भंडग, हेट्ठामुहे सांतरी करेति, उवरि भंड-10 ईर्याध्ययन गए, पडिम्गहं एगजुयगं करेति, कार्य सव्वं पाए य पमञ्जति, भत्तं पञ्चक्वाति सागारं, ताव एगते अच्छति जाव अप्पणो जाएण | पट्ठिता, जहा एगेण स्थले एगेण णावाए, अशक्ये जले एगे एगे णावाए, अहवा एगे जो एगे थले, पलं आमासं, ण विरोलेंते, | ठाणतियं परिहरित्तु मज्झे दूरुहेजा, ण वाहातो पगिझिय २ उष्णमिय २ णिज्झाएजा अहो रुक्खा धानंति, एगचित्तो माणे, ऊद कसणं उक्कोसणं, समुद्दबातेणं, अधस्तात्कसणं, भंडतेणं खिवलं लग्गाए रजाणं ढोकर्ण जयणं वा. ण तस्स तत्प्रतिज्ञ परियाणेजा, ण आढाएका करिज वा, तसिणीओ उवेहेजा, अच्छिजा खडओ, अलिनओ कोदिवियाए फिट्ठो महल्लो वंसी, बंसए बलउ, कट्ठो वट्ठगं, अबल्लओ अवल्लगमेव, कंठगंधो उच्यते, उत्तिंग आगलंतर्ग, चेलमट्टिता चीवरेहिं समं मट्टिया महिन्जति, कुशप| ओ दम्भो, कुंभीचको वा मोल्लविसए असवनश्रो भण्णति, कुर्विदो सोदइ वक्काडओ, उसिंगगं आसेवति, उवरिगं दूसे गेण्हति, | कजले तित्ति पाणिते भरिजति, पो परं०, अप्पुस्सुओ जीवियमरणं हरिसं ण गच्छति, अहिलेसे कण्हादि तिणि वाहिरा, अहवा | उवगरणे बज्झोपवण्णो बहिलेसो, अबहिलेस्से पगतिं गतो, 'एगो मे सासओ०' अहवा उवगरणपुतित्ता एगीभूतो, वोसज्ज | उवगरणसरीरादि, समाहाणं समाधी, संजतगंण चडफडेंतो उद्गसंघट्ट करेति, एवं आधारिया जहा रिया इत्यर्थः ।। रियाए । प्रथम उद्देशक समासः॥ ___ संबंधो नावाधिगारो, नावाए व डंडगमादी, आत्मीयउपगरणं हाहि, एयाणि य असिधणुमादीहिं धारेहिति, दारगं वा । पमजेहिसि भुंजावेहि, घरेहिं वा णेा, अम्हे गावाए कम्मं करेमो, भंडभारेति जहा मंडभारियं ण वा किंचि करेति, थेरा उब्वे-10॥३५७॥ ११९] दीप अनुक्रम [४४५ ४५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रथम चूलिकाया: तृतीय-अध्ययनं "ईर्या", द्वितीय-उद्देशक: आरब्ध: [369]

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