Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
View full book text ________________
आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [२], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२९८-३०४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ६४-७१]
(०१)
पिंडे पणाध्य.
श्रीआचा रांग सूत्र-1
चूर्णिः ॥३४७॥
प्रत वृत्यक [६४-७१]
| दब्बसेज्जाए पगतं, सा केरिसिता संजमजोगत्ति नायब्बा (३०१) सुत्तालावं 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ठाणं काउस्सग्गादी, सयणीयं सेज्जा, मिसीहिया जस्थ णिवसति, चेतिज आसेविजत्ति, तं अप्पंडं० एग साहम्मियं समुहिस्स च्छलणा | आलाया तहेव जहा पिंडेसणाए, णवरं बहिया णीहडं छप्णी सगड वा छइभंग णीणिज्जति कट्ठितो पासेहि, ओकिंचिमे उबरि | उल्लवितो, छनो उपरि चेव, लिचो कुट्टा, एते उत्तरगुणा, मूलगुणे अट्ठवि हणंति, पट्टा विसमा समीकता, मट्ठा माइता, संमट्ठा | पमलिता, संपविता दुग्गंधा सुगंधा कता, बंसगकडणो कम्मे अविसोहिकोडी, दमित धूविता विसोधिकोडी, खुहिनाई दुवारि| याओ जहा पिंडेसणाए, णिण्णुक्खु णीप्पता तं अंतो वा बाहिवा, उदए पस्याणि कंदाणिवा जहा उप्पलकंदगा, पोमणी वा, उस्सए | | कुंडएमु मट्टियं, तप्पोसणिया छातुं वाविज्जति, एवं मूलयीयहरियाणि, उदगप्पयाणि वा इतराणि वा, संजयट्ठाए गीणेज्ना, पीढं ण्हाणपीदादी पुषभणितानि, स्थानात् अन्यस्थानं साहरति-संकामेति, दोसा ते एव, खंति एवं खंभे पासाते दुढे वा विच्छिष्णे | अट्टपारए चा, फालिहोवि कोइ विच्छिन्नी जत्थ सुप्पेज्जति, ठाती वा, अण्णतरगहणा चंपले वा जत्थ पुरिसो निरनो मादि, नान्यत्र, आगाढागाढं असिवाती अलब्भमाणो बा, आहच-कदाचित् स्थितः स्यात् हत्याणि १, अविरुद्धं पागते बहुवयणं विण्हं, मुहाणि वा, कहं ?, उच्यते, अत्रापि त्रयं, आसए आलुए णवबामणमुहाणि, उच्छिते उस्सद्ध उच्चारादि, पवयणादिसु दोसा, सागा| रिया पामतुल्छगिभत्था पुरिसेहि, सागणियाए अगणिसंघट्टो सउदयाए उदगवाहा, सेहगिलाणादिदोसा, सह इस्थिताहिं सहस्थिया | आतपरसमुत्था, सखुकुत्ति खुडाणि चेडरूवाणि, मण्णाभूमि गच्छंति, पडते य वदंताणि, इहरहा य वाउलेंति, अहवामुट्टा सीह| बग्घा सुणगा, पम् गोणमहिसादि तं, भंगमादि दोसा, एतेसु भत्तपाणाई च दळु सेहाणं भुताभुत्तदोसा, आताए सेचं भिक्खुस्स
दीप अनुक्रम [४००४०५]
॥३४७॥
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[359]
Loading... Page Navigation 1 ... 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399