Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध २], चूडा [१], अध्ययन [२], उद्देशक [२], नियुक्ति: [३०४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ७२-८६]
(०१)
शय्याध्ययनं उ०२
चूर्णिः
प्रत वृत्यक [७२-८६]
श्रीआचामि चेव दिवसे तओ ण एति, एवं सध्वं, निरंतर-अविरहिता, साहूण तस्थ दोसा, सीते सड़ी तीए वा परिकम्भ, च्छावणं | रांग मत्र
संजयट्ठाए भवति, इदाणि भण्णति अपकिरिया, कालाइकंता जहिं स मासकर्ष वासावासं वा करेति, अतिता पाहणं वा पडीर्ण
| वा दाहिणं वा उदीणं वा दिसा पनवगकप्पत्ति, कालाक्षरा रआदिसा वा गहिता, अट्ठो भणितो एव, णो सुणिस्संतो न सुद्ध॥३५॥
आयारगोयर सद्दहति, पुषफल वहीदाणस्स समणमाहणा अतिधिकिवणवणीमगा ममुद्दिस्स, आएपणा णित्थरणं सिमत्ति वणि | बुस्मति, अहवा लोहारसालमादी, आयतणं पासंडाणं, अवयन्तिया युद्धस्स पासे, देवउलं वाणमंतरहितं, देउलं वाणमंतरं सप
| डिभ इत्यर्थः, सभा मंडवो, चलंती वा सा सवाणमंतरा इतरा या, पवा जन्थ पाणितं पिजा, पाणितगिह, श्रावणो सकुडओ, पणियA1 साला आवणो चेव अकुडवे, जाणगिह रहादीण वासकुई, सा एगेसिं चेव अट्टा, छुटाकडा छुहा जत्थ कोहाविमति बा, दम्भा | बलिअंति पिणंति या छिअंति या, यचओ पिअति बलिजति य, वज्झा वरत्ता, जागहोणं दलि अंति, इंगालकम्म, एतेसि सभातो | भवंति, सुसाणे गिहाई, गिरि जहा खहणागिरिरमि लेणमादी, कंदरा गिरिहा, संतिये घराई, सेलपाहाणघराई, उवट्ठाणगिह | जत्थ जावइओ उड्डावितु दमंति, सोभणंति भवणं, भा दीप्तौ, उच्चनंतेहिं उपवति, एमा अतिकता, सा दुसीलमंतत्तिकाऊणं एते | आहाकम्ममि ण वदंति, अप्पणो सयट्ठाए कयाई, एनेसि दोसा-अपणो अण्णाई करेमो इतराइतरेहिं कालातिकता, अणतिकता | इमा अआ इतरा, एवं सेमावि अण्णतरा इत्यर्थः, पाहुडे हिं पाहुडति या पहेणगंति वा एगहुँ, कस्य, कर्मवन्धस्य, णिरतस्य पाहुPaiडाई दुम्गतिपाहुडाई च अप्पसस्था सेवणाए सावअकिरिया, महावज्जा पासंडाण अट्ठाए एमा चेव बनब्बया, सारआ पंचण्हं सम
णाणं पगणित २ एसा चेव दत्तव्यया, महासावजा एगं समणस्म जातं समुहिस्स जापति गिहाणि वा महता छजीवनिकायस-
॥३५०॥
दीप अनुक्रम [४०६४२०]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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