Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यक
[४३-४८]
दीप
अनुक्रम [३७७
३८२]
भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
-
श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [८], निर्युक्तिः [२९७...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ४३-४८]
श्रीआचारांग सूत्रचूर्णिः
॥३४२॥
तया आमं ण कप्पति से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अच्छिगं कुंभीए पचति तेंडुगं तेम्बरूवं, एवं चैव वेलुगं विछे, कासवणालिता सीवष्णगं, आमगं असत्थपरिणतं लाभे संते नो पडिगाहेज्जा, फगतंदुला कणियाओ, कुंडओ कुकुसा, तेहिं चैव पूर्वलिता आमलिता, चाउला तंदुला, पिट्ठत्ति आमं, पिडुलोबि तिलपिडं, तिलपपडं आमं असत्यपरिणयं लाभे सन्ते णो पडिगाहेज्जा ।। अष्टमी पिंडेपणा परिसमाप्ता ॥
संबंधी सीलमधिकृत इहापि सीलं, पिंडोऽधिकृतो वा इहापि पिंड एव, खेतं वित्ता चउद्दिसिं पण्णत्रगदिसं वा पहुच संते ० सड्डा भवंति संभवो तं साहुं प्रशान्तं दद् हिंडतं सीलमंतादि संसिद्धा, इमं पुब्वं सिद्धं, मेहुणादो, इतरं आहारकतिणि, छंदिहि, से भिक्खू विस्तारो वा सुहाए समणं च एतप्पगारं सो तं अंतरिओ भोज्जा पुरओ वा भणिज्जा - एतस्स देह, अम्हे अष्णतरं, धम्मो, लाभे संते गो पडिगाद्देज्जा | समणादी पुब्व्वभणिता, गामादिसु पुरेसंयुता पच्छासंधुता, पुत्रं पविसमाणस्स, केवली बूता, उकरेति — परिवहेति, उबक्खडेति रंधेति, सेत्तमादाय एगंतमवकमिज्जा, कालेन सतिकाले तत्थेव पढमं वचति इहरहावि हिंडतं द आरंभ करेज्जा, गिट्टी चेयं, अहा सकालेवि पविस्स उबक्सडिज्जा आहू तं पडियाइक्खिस्तं, माइहाणं. संफासे, णो०, पुण्यामेव पडिसेहिज्जा, तहवि करेज्जा पण पहिगाहेज्जा । मंसमच्छा मज्जिज्जति, सक्कुलिग्गहणा सुकखज्जगं, पूयग्गहणा बेहरद्धो तेछापूतो, आदेसो पाहुणओ उ णो वद्धं २ पुणो २, णण्मत्थ गिलाणो । अण्णतरं अणेगप्रकार, सुविभ गाम वन्नगंधरसफासमन्तं तब्धिरीतं दुब्भि, एगं भुंजति एवं परिविज्जति मायादोसा सईंगालदोसो य, रागदोसरहिता भुंजिज्जा, पाणगं पुष्पं अच्छे कसायक कप कसाए उट्टो होज्जा, अच्छे पुण सोधणादि, सुहेति मुहं से भिक्खु वा भिक्खुणी
९ पिंडेपणा
[354]
॥३४२॥
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि : प्रथम चूलिकायाः प्रथम अध्ययनं "पिण्डैषणा", नवम-उद्देशक: आरब्धः
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