Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध २], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [९], नियुक्ति: २९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ४९-५५]
(०१)
पिंडपणा
प्रत वृत्यंक
श्रीआचावा बहुपरियात्रणं णाम परिट्ठावणिय, बहुभिः पर्याय आपनं बहुमिः पर्यायापन, गिलाणपाहुणगापरियमादीहिं । साहमिया संभो-| संग सूत्र- इया उबहिसुत्तभत्तपाणादिसु, मणुनामणुनसि य भंगा चत्नारि, अपरि० परिहास्तवं न पडियना, सखिते उबस्सए अबसाहिते |
चूर्णिः Nता अन्नपाडए वा सग्गामे, अणु पच्छा, परिहवेंतेणं पाहुणगिलाणादी परिचत्ता, तत्थ गंतुं वदिज्जा-इमे भे असणपाणखाइमसाइमे ॥३४३।। झुंजह, पाणे, परिभाएह वा णं, उके सतमेव परियामाए वा, अण्णमण्णेसि देह, जापतिवणं भन्नति, मुंचंतस्स पारिद्वावणियं, भुने
पढमे कप्पं दाऊण इतरेण कप्पेतब्बं, अह भणाति इतरेण चेव परिवाएयव्वं वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी या परं समुहिस्स | चारभई कुलपुत्तगं मतहरगं वा, णीहई बाहिं णिफिडितं, तं पुण छिन्नं वा अच्छिन्नं वा, छिन्नेत्ति देयं कुलगस्स वा, विवरीय-|
मच्छिन्नं, समणुष्णातं गिण्हाहि, णिसट्ठ, पगते पडी सोय गिहत्थाणं भाव आगारेहिं जाणिना एतं कप्पति एतंण कप्पतिचि ।। । णवमी पिंडेसणा समत्ता।
संबंधो साधारणाहिगारे इमंपि साहमिएहि साहारणं, माण सामन्न, तं पुण विण्डं तिण्डं वा, तस्स अणापुच्छा जस्सिच्छति तस्स देति असामायारीए बढ़ति माया, सेत्तमादाय-तं गहाय तत्थ गन्छिज्जा, संति पुरेसंधुता पुवायरिया पवावगा आगता Vतेसिं देमि, जया वा आयरियाण मज्झगता जेसि पासे मुतं पढितं सुतं वा ते पच्छासंधुता तेसिं, खद्धं २, कामं णाम इच्छाता,
अहापज्जत्तं जहा पज्जतं जावइयं वा बदेजा, इहरहा साधारणतेणिता, इमा णि साधारणतेणिया, अहवा तदपि सामण्णं आलाबगसिद्धं चेव, भगं णाम मणुनं धनादि, संपत्त वा, मिक्खागतो चेव मुंजति जिम्भादंडेणं, विवयं बनादीहिं विगतं विवन, | विगतरसं यन्नगंधरसफासेहिं वा नृ(५)प्रदेइ अण्णेसि रसेहिं वा का (४) आहारति, माया णो, एवं अंतरुच्छणं दोण्हाराणं मज्ज्ञ, ॥३४३॥
[४९-५५]
दीप अनुक्रम [३८३३८९]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रथम चूलिकाया: प्रथम-अध्ययनं "पिण्डैषणा", दशम-उद्देशक: आरब्ध:
[355]
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