Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 353
________________ आगम भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध २], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [८], नियुक्ति: २९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ४३-४८] (०१) AN पिंडैपणा प्रत वृत्यक [४३-४८] श्रीआचा|| अबफलं च फलमत्थओ, झिझिरी वल्लिपलासगमूल, सुरमिपलंबं सग्गयमूल, सल्लइए मूलं मोपई, पलासा(वाला)णवि, आसो- रांग सूत्र- दृपलासं वा आसट्ठो पिप्पलो, तेसि पल्लवा खअंति, नग्गोहो नाम वडो, पिलक्खू पिप्पली, ऊरमल्लइएवि, अंबसरोडुगं डोहियं | चूर्णिः | वा, एवं अंबाडगकचिट्ठदालिमविल्लाणवि, उंबरमंथु वा मंथु नाम फलचूर्णा एव, गम्मोहपिलक्खुसोट्ठाण मंथु वमणितिलेहिं। ॥३४॥ | समगं चुण्णिजंति, आमगं आमगमेच, दुरुकं दुपिटुं, अह अणुभी बीजो साणुवीय आमडागं आमचं, न मृतं अमृतं सजीव| मित्यर्थः, पूतीपिण्णाओ सरिसवभक्खो, अहवा सम्बो चेव खलो कुधितो पूतिपिण्णाओ, महुंपि संसजति तवण्णेहि, एवं णव णीयसप्पीवि, खोलं कल्लाणाणं, एत्थ पाणा अणुप्रसृता जाता संवृद्धा वकंता जीवा, एस्थ जीवा, णस्थि परेण विद्धत्था, एत्थ PA संजमविराहणा, बलीकवग्गुलेस्सादिदोसाग पट्ठिओ, मेरगं च्छोडियणं, मिझो मेदो, अंककरेलुगं वालिखरगं वा, एते गोल्लविसए, AU कसेरुगसिंघाडग, कोंकणेसु पूति आलुगं वा, ण पडिगाहेज्जा, एते जलजातीया होति, उप्पलनालो सम्वेसिपि खिज्जति भिसं | जहरए, पोक्खर केसरं सुकलं, पुक्खलगं खलगं, पुक्खरविगा कच्छमओ, अम्गवीया सालिमादी अनो वा जो परिभोगमेति, Ka मूलवीया फणसमादी, खंधवीया उंबरमादी, पोरवीया उच्छुमादी, अण्णाणिवि एतेहिं चेव जाई परिभोगमेति, एते आसमाणकुप्पं, N अण्णत्थ तकलिमत्थरण वा तकलीसीसएण वा नालियेरिमत्थएण वा खज्जूरिमत्थरण वा, एते एगजीवा, ते छडित्ता मत्थओ |घेप्पति, सो लहुं चेव विद्धंसति, एते ण कप्पंति, काणं पुण खड्यरात ? अंगिरगं खइराएणं समंडवाहियं वा यासिताला तेहिं दूमयंत न सकेयं खाइतुं चेव, तस्स अग्गर्ग-कंदली उस्सुगं-मज्झं कत्तं तीए हथिदसगसंठित, कलतो सिंचा, कलो चणगो, ओली सिंगा IAM तस्स चेव, एवं मुग्गमासाणवि, आमना कति, लसणं सवं, मिजाउ वा पतं तस्सेब, णालोवि तस्सेव, कंदओवि तस्सेव दीप । ॥३४१॥ अनुक्रम [३७७३८२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [353]

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