Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 331
________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [२२६ गाथा १-१४] दीप अनुक्रम [ ३०४ भाग-1 "आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [३], निर्युक्तिः [ २८४...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक २२६ / गाथा: १-१४] श्रीआचा रांग सूत्र चूर्णिः ॥३१९॥ आहणेत्ताकेति चोरं चारिति च मण्णमाणा, केई पदेसणेण, एवं तत्थ छम्मासे अच्छितो भगवं, एलिक्वए जणे भुलो (८५) एलिक्खचि परिसर, ओत्ति पुणो, ताई चैव भूयं ठाणाणि विहरयं तो यहवे वज्झ भूमि फरुसासि बहवेति पायसो ते फरुमा फरुसं आसंति फरुसासिणो, फरुसासित्तातो य फरुमा एव, फरुसा वा आसी अतिकंतकाले, लट्ठीं गहाय नालीयं दंड लट्ठि च गहाय, दंडो सरीरप्यमाणा ऊणो लट्ठी सरीरप्पमाणा, दूरतर एवायरति, नालिया चउरंगुलअतिरित्ता, एगे चउरंगुलादि, विहरियं तो बहवे वज्झमुन्मे भिक्खं हिंडिं, ते एवं लडिहत्था एमावि एवंपि तत्थ विहरतो (८६ ) पुडुपुत्रा य अहेसि सुणतेहिं, एवमवधारणे, एवमवियप्पं तेण विधरंता पुट्टपुथ्या भक्खितपुत्र्या बहवे समणमाहणा संलुंचमाणा सुणएहिं सच्चे लंबंति, सं चमाणेसु देसेसु संतुंचमाणसुणगा, दुक्खं चरिअंति दुश्चरमाणि कामादीणि वकसेस, निधाय डंडं पाहि (८७) णिधायेति णिक्खिप्प, डंडं ण भणति सुणए वारेहि, उपाएण डवति, मणसावि ते णावखंति, सो एवं विहरमाणो अवि गामकंटए भगवं गामकंटगा सोतादिइंदियगामकंटगा, जं भणितं होति चउन्दिहा उवसग्गा, लाटेसु पुण माणुपतिरिच्छिएसु अहिगारो, तेरिया सुणगादयो माणुस्सगाव ते अणारिया पायं आहणंति, अमिस मेश्वचि तं लाढविमयं यदुक्तं भवति प्राप्य, अहवा ते चेव उव सग्गे प्राप्य, कहं सहियव्वा ?, णाओ संगामती सेवा (८८) ण तस्स किंचिवि अग्गमिति णागो, संगामसीसं, जं भणितं होति अग्गाणीयं, सो हि अग्गतो ठितो दूरत्थेहिं चैव उसुमादीहिं विज्झति, समीवत्थेहि य असिमादीहि य, सो य कृतयोगचा तद द्दण्णमाणोऽविण सीतति, पारमेव गच्छति, पारं नाम परेसिं जतो, एवं भगवयाऽवि परीसहसतू पराजिता, एवंपि तत्थ विहरतो एवं अवधारणे बोस कार्ड विहरंतओ, यदुक्तं भवति-अणवरज्झमाणो, एगया कदायि गामि पविद्वेण निवासो व लद्ध परुषादिसदनं [331] ॥३१९॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :

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