Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति : [२८५-२९७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-९]
(०१)
प्रत वृत्यक [१-९]
श्रीआचा
विमुनी, आयारपकप्पो (२९१) पञ्चक्खाणपुग्धस्स नतियवधूतो आयारणामधिआओ बीसतितमातो पाहुढछेदाओ, आयाराओ संग-16आयारग्गाई णिज्जूदाई, वितियातो 'जहा पुण्णस्स कत्थति तहा तुन्छस्स कत्थति' अब्बोगडो (२९२) अविसतो अवि तेसि तो।।
चूर्णिः IN अय्योकट इति, डंडणिक्खेवो 'णेव सयं छजीवनिकायमत्थं दंड वाममारभेआ, लोगविजते अवि ते-'एसि रक्वणा अप्पमत्था, ॥३२७॥
विसयकसायवअणा कीति (पसत्था), सीओसणि जेवि जीवसंरक्षणमेव, सीतोसिणा परीमहोबसग्गा अहियासिअंति, सम्मने लोग(सारे य उञ्जमइ त जीवसंरक्षणथमेव, धूतमहापरिष्णापि जीवपालणत्य, अट्ठमे च इमा जीवविराहणा तेण भत्तपरिणा, वेण
तं णात !, आयरियं ! उबदेसियं वा ?, जिणेण भगवता, जीवरक्खणधं पिंडेसणाओ जहा तहा सेआरिया जाव विमोती जीवपालनार्थ, एवं ता चिट्ठतो, अथ सूत्रम्-गविहो पुण (२९४) सदविशेषात्सर्वमेकं, तदेव भूयो द्विविधो-जीवाधाजीवाथेति, सम्वनिक्खेवो एवं वित्वारिजति बिरजति तहा, अहवा एगविही असं जमें, दुविहे अस्थतो-बाहिरतरो अज्झन्थो, ने सेवंता, कई च बाहिरहितो, कायवायाणं, मणादिविभासा, चाउआमो य, बहिद्धा आदाणं ग्रहणमित्यर्थः, गृहीतं परिभुज्यते नागृहीसमिति, तेन गहणमेव, पंचमे पंच महब्बता, सराइभोयणा छद्वा, जाव मीलंगसहस्सा आयारस्स पविभागो, सवं आतिक्खेउं (२९५) जेण सुहतर होइ, एतेण कारणेणं पंच महव्वया पणत्ता, तेसि पेब (२९६) रक्खगट्ठाए एकेकस्स तस्सेव महब्बयस पंच २| भावणाओ, सस्थपरिण्णाए अम्भितरो सव्व एव आचारार्थमित्यर्थः, पिंडेसणादि जाव उग्गमउपायणेसचा जाब अढविह पिंडनिज्जुत्तीए, सेजाएवि वस्थेसणाए पादेसणाए उग्गहपडिमाए, भासाताणं जहा वकसुद्दीए, सेआयरिया उग्गहे तिव्हं छको मिक्लेवो सो, पिंडभासा बस्थे पाते चउको णिक्खेको, आयारग्गाणेसो पिंडत्थो चण्णितो समासेणं । एतो एक पृण अजन-
दीप
ANDE
अनुक्रम [३३५
॥३२७॥
३४३]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: .प्रथम चूलिकाया: प्रथम-अध्ययनं "पिण्डैषणा" आरब्धं प्रथम चूलिकाया: प्रथम-अध्ययनं "पिण्डैषणा", प्रथम-उद्देशक: आरब्ध:
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