Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध २], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२८५-२९७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-९]
(०१)
प्रत वृत्यक [१-९]
श्रीआचा- 10 यणं वनइस्मामि ॥१॥ पिंडेसणाओ चउके पुवाणुपुयादीसु जहासंभवं, सुत्तालावगे सुत्तं उच्चारेयब-से भिक्खू वा भिक्खुणी |STI रांग सूत्र
Dवा भिक्खू हेडिमज्झयणगुणयुत्तो दशवकालिकमुत्तराध्ययनेषु अहवा 'जे मिक्खू तिहिं वत्थेहि परिसिते मिक्खू चउप्पगारो चूर्णिः
निषेधः विभासा, तथा मिक्सुणीवि, गाइत्ति वा गिहत्ति वा एगहुँ, गिहस्स पती गिहपति, गिहपतिग्गहणं रायपिंडप्रतिषेधार्थ, कुलग्ग॥३२८॥
Nहणं पडिकुट्टपडिसेहार्थ, पिंडं पातयामि अनया प्रतिज्ञया, अविसेसिते पिंटो, स एव विसेसितो असणादि चउनिहो, जहा सुत्, IVA या पाडेउं वाणिग्गतो णिग्गतो व णं पाडेउं, जं लम्भति तस्स पाडेउंति सण्या, पाणगस्सत्ति सामइगी संज्ञा पिंडो, यथा जीवो क्षेत्रज्ञो ।
सांख्यानां, पडिया प्रतिज्ञा, विश प्रवेशने अनु पश्चाद्भावे, सुत्तत्थपोरिसिं सण्णाभूमि च गंतुं पच्छा पविढे चा, अहवा गिहीणं पागकते पच्छा पविढे अणुपविट्ठो, अहवा पिंडोलगादि पविद्वेसु पच्छा पविद्वेसुमणुपविढे समाणे, गच्छवासीणं संघाडएण सम, | अहवा समणाणऽस्थित्ते इत्यर्थः, पुनर्विशेषणे, किं विशिनष्टि ?, अशनादि-शत्तुकोदणकुम्मासादी, अहवा प्राणादीन् प्राणेहिं वा,पाणेहि
अदुव आगंतुएहि, अहवा जहा चउत्थरसिते गोरससत्तुयदोसीणेसु होजा, आगंतुगा मूर्यगादी, पणगो खञ्जगदोसीणाइस, भायणेसु | वा, पइणइतेवी वा तलारतियातो वा, अहवा चीयरगहणा कंदाती, हरियं मूलगमादी, हरितग्गहणा रुक्खादी, बलिमादिसु संभव
होजा, सचेहिं संसर्ग, इतरेहिं उम्मीस्स, सीतोदएण अमिसित्तं, कहं ?, अग्गि(ग्ग)भिक्खमादी पाणितेण अभिसिंचति, निक्खेवो, IM तंदुलोदएण मित्तगं उदगं, मिक्खा वा वरिसे पडतए, रयसा घासितं, समंतारएण मिस्सितं, उवचितसकुतपाणाणिमादि, तहप्रकार
एतेहि दोसेहिं जुत्तं, परत्थहते (हत्थे) हत्थे पेव परमत्थो, परभावणं, अफासुगं सचित्तं, अणेसणिजं गवसणगहणेसणाय असुद्धं, | मन्नमाणो चिंतमाणो, लाभे संते-बिजमाणे नो पडिग्गाहिजा, आच-सहसा सिता-कदाति अणाभोगे पडीच्छितं, भंगा चत्तारि,
दीप
अनुक्रम [३३५३४३]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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