Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
View full book text ________________
आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [२], नियुक्ति: २८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१६]
(०१)
in
निद्रा
श्रीआचारांग सूत्र
चूणिः
॥३१॥
प्रत
वृत्यंक
| तु जहा अण्णणे थाणमोणादीरहि जइत्ता रसिं सारक्वगत्य णिदं भजीते, मो तु भगवं जहा दिवा नहा रतिपि जयमाणेसि मणो | वाकाएहिं एगग्गो अप्पमत्त इति जितिदियो कसायरहितो, कह?, मम एते पमादा ण भविज, ठाणाइएतु अप्पमते ज्झाणे य,
बजेनादि | सम्मं आहितो समाहिती धम्म मुके ज्झायति भगवं, सधपमादाणं णिप्पमातो गुरुमाती सोवि जितो, जो य दुञ्जयं तं णिद-।
प्पमादं परिहरिततो सो कहं इंदियादिपमादं काहिति ?, जत्थ भण्णति-णिपि णो (६९) पमादे, मिसं कामो पगामे, तं निई | सो ण पगामं सेवितां सेवइ वा भगवं, स एव उबट्ठागति अणि वजागरियन संजमे समुट्ठाणं वा तेणं वा तेण उद्वितो, भदन्त| नागार्जुनीया तु-णिहावि णपगामा आसी तहेब उठाए जतिआसि, तक्खणादेव उद्वियं वा, जग्गवती अप्पाणं पायसो | छउमत्थकाले जग्गबइ भगवा अप्पाणं ज्झाणेण पमादाओ, सरीरसंधारणत्थं वा चिरं जम्गिता ईसिं सम(इ)तासि इत्तरकालं णिमे-| सउम्मेसमेत्तं लवमित्तं वा ईसं सइतयां आसी जहा अट्ठीयग्गामे, निदासुहं प्रति अपडिपणे, यदुक्तं भवति-अणभिलासी, सर्छ । किर छउमस्थकालं निद्दापमादो अंतोमुहत्तं आसी, सो एवं मट्टारओ निदापमादा अणंतरं संजममाणे (७०) पुणरवि सयं संमं वा बुज्झमाणो, ण परेहिं विबोधिञ्जमाणे, बुज्झमाणो एव वुट्ठो, ण पडिसहो, तेण य ज्झायंति, ण णिहापमादं चिरं करति, सो एवं ज्झाणेण निदं जिणिजमाणो जति कदाइ निदाए अभिभूयति ततो निक्षम्म एगता रातो बहिं चंकमिया मुहुत्तागं | णिच्छितं कम्म णिकम्म उवस्सगाओ निक्खंमिओ, एगयादि गिम्हे अतिणिद्दा भवति हेमंते वा जिघांसुरादिसु, ततो पुन्धरसे अबरत्ते वा पुखपडिलेहिय उवासयगतो, तत्थ णिहाविमोयणहेतु मुहुत्तागं चंकमिओ, णिई पविणेत्ता पुणो अंतो पविस्स पडिमागतो झाइयवान् , जेसु गुत्तामुत्तेसु व समगम्स, सयणे सु तत्युवसम्गा (७१) मुप्पति तत्थ तं सपणं, तस्सेति तस्स छउमस्थकाले||॥३१३॥
[२२६गाथा १-१६]
दीप
अनुक्रम [२८८2021
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[325]
Loading... Page Navigation 1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399