Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 287
________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [४], नियुक्ति: [२७५..], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २११-२१५] (०१) श्रीआचारांग पत्र घृणिः ॥२७५॥ PURA प्रत वृत्यक [२११ चिंता उप्पज्जति, 'पुट्ठो अहमंसि भवति पत्तो, केण ?, सीतपरीसहेण णालमहंसिण पडिसेहे, अलं पर्याप्तयारणभूपणेषु, णविशीतस्पर्शाअहं अलं तं उप्पन अहियासेउं, किमिति !, सीतफास अहियासित्तए, ण दब्बसीतं भावसीतमवि, इत्थी सकारपरीसहो य दो सहत्वं भावसीनला एते, अहियासणा गाम महणं, जहा मुदसणो गाहाबई तहा णालमहं तं पड़प्पन अहियासेउं, से सबसमपणागसपण्णाणेणं अप्पाणेणं से इति सह भोड्या ओवरए ओहरितेल्लो, सब्वसमष्णागतं पण्णाणं जस्म भवति सध्यसमण्णा- 10/ गते पण्णाणे, अतो य तस्म सन्चसमण्णागतं पण्णाण,तंजहा-असहणिजे परीसहोदए काएण मणसा बायाए य ण खुम्भति, केपि अकरणाए, केयि ण सम्बे, अकरणं अणासेवणं, कस्स १, मेहुणस्स सुदंसणवत्, आउट्टिनि वा अन् द्विति वा एगट्ठा, जो पुण अपलो, मणेण वाताए काएण ण पारेति अपाणं साहारिचए तबस्सियो उपते से, तयो किं करेति !, णणु भण्णति-जं सेवे गिहमादिते एगो रागदोसरहितो सण्णायपहिं उबरए, स च भोइयाए सणिरुद्धोण सकेति कतोइवि णिस्सरिउं, सा य तं आलिंगणाइएहिं उबयारेहि पुब्बलद्धप्पसरा खोभेति, ताहे सो कतितवमतो, तं च मतमिव णचा, देहमादि य तिविहं अगासं तं आदते, यदुक्तं | भवति-कइतबउबंधणं, मा य तं वारेति विद्धंसेजति तो सुंदर, अह ण विसज्जेति ताहे चितेइ-मा मे भंगो भविस्सति उब्बधिमावि, विमभक्खणं बावि करेजा, इतराईपि य भणइ जति मे ण मुयह तो विमभक्खणं करेमि उकलंबेमि वा पासायतलाओ तट्ठीउ वा अप्पाणं मृयामि, एवमचि अमुच्चमाणो ताव करेति, अण्णोवि जो अणुवसग्गिजमाणो णिविझ्यातिकयपरिकम्मो तहावि ण द्वाति ण य तरति भत्नपचक्खाणं काउंसो गिद्धपटुं वेदाणसं वा अन्भुवेति इति, एवं तत्थेवतस्स कालपरियार तस्थमिति तस्थ उवसग्गे, असहणिजे वा मोहणिजे, तम उवस्मन्गपत्तस्स अभिभवकीवस्य वा इतरस्स बा, ण एतं बालमरणं संसारबडणं, २१५] ॥२७५॥ दीप अनुक्रम [२२४२२८] र पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [287]

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