Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यक
[१८५
१८७]
दीप
अनुक्रम
[१९८
२००]
श्रीआचा
रांग सूत्रचूर्णिः ॥२२१ ॥
भाग-1 "आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [६], उद्देशक [३], निर्युक्तिः [२५२...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १८५-१८७]
पत्तिवाहि रोएहि, आगतपणाणं आगतं उचलद्धं मिसं गाणं पण्णाणं, परोवदेसाओ सुयं तेणं आगतं, आगमितं गुणियं च एगट्टा, आभिणिबोहियं तम्गयमेव, पच्चक्खाणाणि आयसमुत्थाणि पसस्थेहिं अज्झत्रसाणेहिं लेस्साहिं विसुज्झमाणाहिं उप्पअंति, तं एवं तेसि तं आगमं आगमेंताणं पुब्बगहियं वा गुणंताणं णिञ्चसज्झाओवओगाओ अत्रेण य अभितरेण बाहिरेण वा तवेण अप्पाणं भावेंताणं किसा वाहा भवति 'एगग्गहणे तजाइयग्रहण' मितिकाउं अपि सरीरं किसीभवति, अतो युच्चति येन कतेण ते मंससोणिए मिसं तणुते, येन णयंतस्स रुक्षाहारस्य अप्पाहारस्स पायसो खलतेणेव आहारो परिणमति, किंचि रसीभवति, रसाओ सोणियं, तंपि कारण अपत्ता एते तणुयमेव भवति, सोणिते पतणुए य तत्पुच्वगं मंसंपि तणुईभवति, एवमेयं अहिं मंसं सुकमिति सव्वाणि एयाणि तजुईभवंति प्रायसो, दुःखं चायतं भवति, बाते य सति णसंतस तत्तायपागो व सोवियादीणं तणुतं भवति, धन्नो दिहंतो गंडओ वा, 'से णं तेणं तेणं उरालएणं विउलेणं पयत्तेणं सुक्खे निम्मंसे' एवं सरीरे विधुणणा भवति, उदयो भवति तेसिं, तणुयसीहवेलाइएणं जोवि उबगरणलाघव अत्थो भणितो सोवि जहासंभवं जोएयन्त्रो, तत्थ अतिकंतं सुतं अचेल - इए लाघवियागमे, पेहा नापादिपरिहाणी ण भवति, तहा कम्मविधुणणत्थं सरीरलाघवंपि आगमेमाणे, न केवलं उचगरणलाघवं, एवं आगमतो वा स अभिसमण्णागतो, दुविहेणवि तवेण सरीरलाघवं भवति, जह्वेयं भगवया पवेइयं, भगवया तित्थगराणं तिरथगरेहिं वा, साधु आदितो वा वेदितं सरीरघुणणं, केसि च तवसमाही चउच्चिहा-णो इहलोगत्थयाए तवं अहिडिज एवं पवेइयं, तहेव य सद्दहति आयरति य, तमेवं अभिसमिच्चा, तमिति तं तित्थगरभणियं सरीरघुणणं संमं अभिसमिच, जं भणितं णचा, सबओ सत्तादिकमेणं सरीरं घुणाइ, दव्बओ किसा वाहा भवति, पतणुते मंससोणिते भवंति, वाणि दध्यओ आहारे जेहिं
आगतप्रज्ञानादि
[233]
॥२२२॥
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
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