Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 11
________________ हुए अपने अप्रतिबद्ध-विहार, तपस्या, ज्ञान, ध्यान, न्यातिसंबन्धी अनेक उद्धार और मौनादि शुभाऽऽचरणोंसे प्राचीन प्रभाविक आचार्योंकी बराबरी को प्राप्त हुए, यह अनुभवसिद्ध प्रत्यक्ष सभी जानते हैं। इस प्रस्तुत · श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी' ग्रन्थके अन्दर इन्हीं गुरुश्रीके जीवनपर्यन्त किये हुए कार्य एवं दूसरे वर्णन करने योग्य सदुपदेश प्रश्नोत्तर आदिका प्रसंग होनेपर भी ग्रन्थवृद्धिके भयसे संक्षेपमें ही वर्णन किया है और इस ग्रन्थमें रक्खे गये विषयोंको सुगमतासे देखने के लिये विषयानुक्रम भी दिया गया है। ____ इस · श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी' ग्रन्थके रचनेमें साहित्यविशारद-विद्याभूषण-जैनश्वेताम्बराचार्य-श्रीश्री१००८ श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजीने मूल भाषा संशुद्धि में, एवं व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्याय--श्रीमद्यतीन्द्रविजयजीने भी प्रूफ संशोधनमें मेरेको अच्छी सहायता दी है । अतएव इन महानुभावोंका आभार मानता हूं । मनको निश्चल रखने पर भी स्वाभाविक प्रमादादि दोषोंके वश कहीं अशुद्धि रह जाना संभव है। क्यों कि-" स्त्रीके समान पुस्तक कभी शुद्ध नहीं हो सकती ” इस उक्तिको ध्यानमें रखकर सज्जनगण इस ग्रन्थको संशोधन करके पढ़ें। विद्वानोंसे ऐसी सादर आशा है। ग्रन्थकर्तामुनि गुलाबविजय

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