Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* आमेर भंडार के अन्य *
२ अनुप्रेक्षा
रचिता-श्री जोगेन्द्रदेव लक्ष्मीचन्द्रदेव । भाषा-प्राकृत। पत्र संख्या ३, साइज ६x४. इञ्च अनेकार्थध्वनि मंजरी
रचयिता-श्री नन्ददास। भाषा-हिन्दी । पत्र संख्या ६. साइज १२४५. इश्च । सम्पूर्ण पद्य संख्या १५६.रचना संवत् १८२४. नंगसिर कृष्णा दशमी । विषय-शद्धकोप । मंगलाचरण यह है
यो प्रभु ज्योतिमय जगतमय कारन करत अभेव ।
विधन इरन सब शुभ करन नेम नमो भा देव ।। अन्तिम पाठ
मार्गशीर्ष दशमी ग्वा असित पक्ष शुभ जानि ! अन्द प्रातारह से बपि ऊपर चौविस मान ।। २॥ पठन काज लिखि प्रेम कर नंदरिसोर विवेद ।
ज्ञानी लेहु सुधारि कवि अक्षर ही को भेद ।। २ ।। अनेकार्थ नाम माला वृत्ति
रचयिता आचार्य हेमचन्द्र। भाषा--संस्कृत । पत्र संख्या २५६. साइज १०||४|| इश्च । ग्रन्थ लोक संख्या १२६१०.
इसाचार्य श्री हेमचन्द्र विरचितायामनेकाथाकोर वाकर कौमुदीत्यभिधानायां स्वापज्ञानेकार्थ संप्रटीकायामानेकार्थी शपाव्ययः कांडः समाप्तः ।
श्री हेमसूरिशिष्येण श्रीमन्महेंद्रसुरिणा ।
भक्तिनिष्टेन टीकायां तन्नाम्नेव प्रतिष्ठिता ।। १ ।। सम्यक ज्ञानानधेर्गुणो रनवाधः श्रीहेमचन्द्रप्रभोः।
अथव्याकृतिकोशल व्यसति वास्मादशा तादृशं ।। व्याख्यामः स्म तथापि तं पुनरिंद नाश्चर्यमंतर्मन
स्तस्या स्रजमपि स्थितस्य हिमवयं व्याख्याम तु ब्र मह ॥२॥ यल्लक्ष्यं स्मृतिगोचरसमभवत् दृष्ट' व शास्त्रांतर ।
तत् सर्वे समदशि किंतु कतिचित् नादृष्ट लक्ष्याः क्वचित् ।। असूक्ष्यं स्वयमेव तेषु सुमुस्विः शाकेषु लक्ष्यं बुधेः ।
चार
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