Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 531
________________ २२ महरिद्धि २३ देवयाणंदयं २४ वंदे ॥३०२॥ निच्छीण्णभवसमुद्दे वीसाहियसयजिणे सुहसमिद्धे । सिरिचंदमुणिवइनए |सासयसुहदायए नमह ।। ३०३ ॥७द्वारम् ॥ सिरिउसभसेण १ पहु सीहसेण २ चारु ३ वजनाहक्खा ४ । चमरो ५ पजोय ६ वियम्भ ७ दिण्णपहवो ८ वराहो ९ य ॥ ३०४ ॥ पहुनंद १० कोत्थुहावि ११ य सुभोम १२ मंदर १३ जसा १४ अरिट्ठो १५ य । चक्काउह १६ संबा |१७ कुंभ १८ भिसय १९ मल्ली २० य सुंभो २१ य ॥ ३०५ ॥ वरदत्त २२ अजदिन्ना २३ तहिंदभूई २४ गणहरा पढमा । सिस्सा रिसहाईणं हरंतु पावाई पणयाणं ॥ ३०६॥८द्वारम् ॥ __बंभी १ फग्गू २ सामा ३ अजिया ४ तह कासवी ५ रई ६ सोमा ७॥ सुमणा ८ वारुणि ९सुजसा १० धारिणि ११ धरिणी १२ धरा १३ पउमा १४ ॥ ३०७ ॥ अजा सिवा १५ सुहा १६ दामणी १७ य रक्खी १८ य बंधुमइनामा द| १९ । पुप्फवई २० अनिला २१ जक्खदिन्न २२ तह पुप्फचूला २३ य ॥ ३०८ ॥ चंदण २४ सहिया उ पवत्तिणीओं चउवीसजिणवरिंदाणं । दुरियाई हरंतु सया सत्ताणं भत्तिजुत्ताणं ॥ ३०९॥९ द्वारम् ॥ ___ अरिहंत १ सिद्ध २ पवयण ३ गुरु ४ थेर ५ बहुस्सुए ६ तवस्सी ७ य । वच्छल्लया य एसिं अभिक्खनाणोवओगो ८य ॥ ३१ ॥दसण ९ विणए १० आवस्सए य ११ सीलवए १२-१३ निरइयारो । खणलव १४ तव १५ चियाए १६ वेयावच्चे समाही १७ य ॥ ३११ ॥ अप्पुवनाणगहणे १८ सुयभत्ती १९ पवयणे पभावणया २०। एएहिं कारणेहिं तित्थरत्तं लहइ जीवो ॥ ३१२॥ संघो पवयणमित्थं गुरुणो धम्मोवएसयाईया । सुत्तत्थोभयधारी बहुस्सुया होति Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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