Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 569
________________ K HASSASSINAASARAS दोन्निवि तरा भवंती सत्थाइसु अन्नहा भयणा ॥ ८०२॥ जइ जग्गंति सुविहिया करेंति आवस्सयं तु अन्नत्थ । सिजायरो न होई सुत्ते व कए व सो होई ॥ ८०३ ॥ दाऊण गेहं तु सपुत्तदारो, वाणिजमाईहि उ कारणेहिं । तं चेव अन्नं | व वएज देस, सेज्जायरो तत्थ स एव होइ ॥८०४॥ लिंगत्थस्सवि वज्जो तं परिहरओ व भुंजओ वावि । जुत्तस्स अजुत्तस्स व रसावणे तत्थ दिद्रुतो ॥ ८०५॥ तित्थंकरपडिकुट्ठो अन्नायं उग्गमोवि य न सुज्झे । अविमुत्ति अलाघवया दुल्लहसेजा उ वोच्छेओ ॥ ८०६॥ पुरपच्छिमवजेहिं अवि कम्मं जिणवरेहिं लेसेणं । भुत्तं विदेहएहि य न य सागरिअस्स | पिंडो उ ॥ ८०७ ॥ बाहुल्ला गच्छस्स उ पढमालियपाणगाइकजेसु । सज्झायकरणआउट्टिया करे उग्गमेगयरं ॥ ८०८॥ ११२ द्वारम् ॥ | चउदस दस य अभिन्ने नियमा सम्मं तु सेसए भयणा । मइओहिविवज्जासे होइ हु मिच्छं न सेसेसु ॥ ८०९॥8 ११३ द्वारम् ॥ चउदस ओही आहारगावि मणनाणि वीयरागावि । हुँति पमायपरवसा तयणंतरमेव चउगइया ॥८१०॥ ११४ द्वारम्॥ जमणुग्गए रविमि अतावखेत्तंमि गहियमसणाइ । कप्पइ न तमुवभोत्तुं खेत्ताईयत्ति समउत्ती ॥ ८११॥ असणाईयं कप्पइ कोसदुगभंतराउ आणेउं । परओ आणितं मग्गाईयंति तमकप्पं ॥ ८१२ ॥ पढमप्पहराणीयं असणाइ जईण कप्पए भोत्तुं । जाव तिजामे उडे तमकप्पं कालइकंतं ॥ ८१३ ॥ कुक्कुडिअंडयमाणा कवला बत्तीस साहुआहारे । अहवा ARAASARA Jan Education Intemanong For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org

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