Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
प्रवचन
सूत्रे
॥५०४॥
उवरिमया उटुं च सकप्पथूभाई ॥६४॥ संखेजजोयणा खलु देवाणं अद्धसागरे ऊणे । तेण परमसंखेजा जहन्नयं पन्नवीसं १९५-२०३ तु ॥६५॥ भवणवइवणयराणं उर्दु बहुओ अहो य सेसाणं । जोइसिनेरइयाणं तिरिय ओरालिओ चित्तो॥६६॥१९८द्वारम् भवनादीनि
भवणवणजोइसोहमीसाण चउवीसई मुहुत्ता उ । उक्कोस विरहकालो सबेसु जहन्नओ समओ ॥ ६७ ॥ नव दिण वीस 51 गा. मुहुत्ता बारस दस चेव दिण मुहुत्ता उ । बावीसा अद्धं चिय पणयाल असीइ दिवससयं ॥ ६८ ॥ संखिज मास आण- ११५०-७८ यपाणय तह आरणचुए वासा । संखेजा विन्नेया गेविजेसुं अओ वोच्छं ॥ ६९॥ हिट्टिमे वाससयाई मज्झिम सहसाई |उवरिमे लक्खा । संखिज्जा विन्नेया जहसंखेणं तु तीसुपि ॥ ७॥ पलिया असंखभागा उक्कोसो होइ विरहकालो उ। विजयाइसु निद्दिट्ठो सवेसु जहन्नओ समओ ॥ ७१ ॥ १९९ द्वारम् ॥
उववायविरहकालो एसो जह वण्णिओ य देवेसु । उबट्टणावि एवं सबेसि होइ विन्नेया ॥ ७२ ॥ २०० द्वारम् ॥ एको व दो व तिन्नि व संखमसंखा य एगसमएणं । उववजंतेवइया उबढ्तावि एमेव ॥ ७३ ॥ २०१ द्वारम् ॥ पुढवीआउवणस्सइ गम्भे पज्जत्तसंखजीवीसुं । सग्गचुयाण वासो सेसा पडिसेहिया ठाणा ॥ ७४ ॥ बायरपजत्तेसुं सुराण भूदगवणेसु उप्पत्ती । ईसाणंताणं चिय तत्थवि न उवट्टगाणंपि ॥ ७५ ॥ आणयपभिईहिंतो जाऽणुत्तरवासिणो चवेऊणं । मणुएK चिय जायइ नियमा संखिजजीविसुं ॥७६ ॥ २०२ द्वारम् ॥
परिणामविसुद्धीए देवाउयकम्मबंधजोगाए । पंचिंदिया उ गच्छे नरतिरिया सेसपडिसेहो ॥ ७७॥ आईसाणा कप्पा ॥५०४॥ उववाओ होइ देवदेवीणं । तत्तो परं तु नियमा देवीणं नत्थि उववाओ ॥ ७८ ॥२०३ द्वारम् ॥
NAGARIKCACARA
en Education Interior
For Private
Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628