Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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एकसमओ जहन्नो उक्कोसेणं तु जाव छम्मासा । विरहो सिद्धिगईए उबट्टणवज्जिया नियमा ॥ ७९ ॥ २०४ द्वारम् ॥
सरिरेणोयाहारो तयाय फासेण रोमआहारो । पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायबो ॥ ८०॥ ओयाहारा जीवा 8 सवे अपजत्तगा मुणेयबा । पज्जत्तगा य लोमे पक्खेवे हंति भइयवा ॥ ८१॥ रोमाहारा एगिंदिया य नेरइयसुरगणा
चेव । सेसाणं आहारो रोमे पक्खेवओ चेव ॥ ८२॥ ओयाहारा मणभक्खिणो य सबेऽवि सुरगणा होति । सेसा हवंति जीवा लोमाहारा मुणेयवा ॥ ८३ ॥ अपजत्ताण सुराणऽणाभोगनिवत्तिओ य आहारो। पजत्ताणं मणभक्खणेण आभो|गनिम्माओ॥ ८४ ॥ जस्स जइ सागराई ठिइ तस्स य तेत्तिएहिं पक्खेहिं । ऊसासो देवाणं वाससहस्सेहिं आहारो॥८५॥x दसवाससहस्साई जहन्नमाऊ धरंति जे देवा । तेसि चउत्थाहारो सत्तहिं थोवेहिं ऊसासो ॥ ८६ ॥ दसवाससहस्साई समयाई जाव सागरं ऊणं । दिवसमुहुत्तपुहुत्ता आहारूसास सेसाणं ॥ ८७ ॥ २०५ द्वारम् ॥
___ असीइसयं किरियाणं १८० अकिरियवाईण होइ चुलसीई ८४ । अन्नाणिय सत्तट्ठी ६७ वेणइयाणं च बत्तीसं ३२|| En८८ ॥ जीवाइनवपयाणं अहो ठविजंति सयपरयसद्दा। तेसिंपि अहो निच्चानिच्चा सद्दा ठविजन्ति ॥ ८९॥ काल १
स्सहाव २ नियई ३ ईसर ४ अप्पत्ति ५ पंचवि पयाई । निच्चानिच्चाणमहो अणुकमेणं ठविजंति ॥९०॥ जीवो इह अत्थि | सओ निच्चो कालाउ इय पढमभंगो। बीओ य अस्थि जीवो सओ अनिच्चो य कालाओ॥९१॥ एवं परओऽवि हु दोन्नि | भंगया पुबदुगजुया चउरो । लद्धा कालेणेवं सहावपमुहावि पार्वति ॥ ९२॥ पंचहिवि चउक्केहिं पत्ता जीवेण वीसई| भंगा । एवमजीवाईहिवि य किरियावाई असिइसयं ॥ ९३ ॥ इह जीवाइपयाई पुन्नं पावं विणा ठविज्जन्ति । तेसिमहो
BUSTOSHIRISHISHISHISHISHISHI
म.सा.८५
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