Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 602
________________ सूत्रे **** २१४-१५ जीवसंख्याकर्मप्रकृतयः गा. प्रवचन कंखीहिं जीवेहिं ॥४७॥ सिरिअम्मएवमुणिवइविणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । सपरहियत्थं रइयं कुलयमिणं जीवसंखाए ४॥४८॥ २१४ द्वारम् ॥ पढमं नाणावरणं १ बीयं पुण दसणस्स आवरणं २ । तइयं च वेयणीयं ३ तहा चउत्थं च मोहणीयं ४ ॥४९॥ ॥५०७॥ पंचममा ५ गोयं ६ छटुं सत्तमगमंतरायमिह ७ । बहुतमपयडित्तेणं भणामि अट्ठमपए नाम ८॥५०॥२१५ द्वारम् ॥ पंचविहनाणवरणं नव भेया सणस्स दो वेए । अट्ठावीसं मोहे चत्तारि य आउए हुति ॥५१॥ गोयम्मि दोन्नि पंचंतहराइए तिगहियं सयं नामे । उत्तरपयडीणेवं अट्ठावन्नं सयं होइ ॥५२॥ मइ १ सुय २ ओही ३ मण ४ केवलाणि जीवस्स आवरिजति । जस्स प्पभावओ तं नाणावरणं भवे कम्मं ॥ ५३ ॥ नयणेश्यरोरहि केवल४दसणआवरणयं भवे चउहा । निद्दा ५ पयलाहि छहा ६ निदाइदुरुत्त ७-८ थीणद्धी ९ ॥५४॥ एवमिह दसणावरणमेयमावरइ दरिसणं जीवे । सायमसायं च दुहा वेयणियं सुहदुहनिमित्तं ॥ ५५ ॥ कोहो माणो माया लोभोऽणताणुबंधिणो चउरो। एवमपञ्चक्खाणा पच्चक्खाणा य संजलणा ॥ ५६ ॥ सोलस इमे कसाया एसो नवनोकसायसंदोहो। इत्थीपुरिसनपुंसगरूवं वेयत्तयं तंमि ॥ ५७ ॥ हासरईअरईभयसोगदुगुंछत्ति हासछक्कमिमं । दरिसणतिगं तु मिच्छत्तमीससम्मत्तजोएणं ॥५८॥ इय मोह अट्ठवीसा नारयतिरिनरसुराउय चउक्कं । गोयं नीयं उच्चं च अंतरायं तु पंचविहं ॥ ५९॥ दाउं न लहइ लाहो| न होइ पावइ न भोगपरिभोगं । निरुओऽवि असत्तो होइ अंतरायप्पभावेणं ॥ ६०॥ नामे बायालीसा मेयाणं अहव होइ सत्तट्ठी। अहवावि हु तेणउई तिगअहियसयं हवइ अहवा ॥ ६१॥ पढमा बायालीसा ४२ गइ १ जाइ २ सरीर ARRRRRRRORIS १२३३-६१ पणियं सुहदुहनिरत्त ५.८ थीणा ॥ ५३॥ नयणे१२ सय २ ओही ********* ॥५०७॥ Jan Education a l For Private Personel Use Only D ww.janelibrary.org

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