Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
अहवावि अनितस्सा आरोवण सुत्तनिद्दिढ ॥ ७७६ ॥ एगक्खेत्तनिवासी कालाइक्कंतचारिणो जइवि। तहवि हु विसुद्धचरणा विसुद्धआलंबणा जेण ॥ ७७७ ॥ सालंबणो पडतो अत्ताणं दुग्गमेऽवि धारेइ । इय सालंबणसेवी धारेइ जई असढभावं ॥ ७७८ ॥ काहं अछित्तिं अदुवा अहिस्सं, तवोवहाणेसु य उज्जमिस्सं । गणं व नीइसु य सारइस्सं, सालंब-18 सेवी समुवेइ मोक्खं ॥ ७७९ ॥ १०४ द्वारम् ॥ आ जाओ य अजाओ य दुविहो कप्पो य होइ नायबो । एक्केकोऽवि य दुविहो समत्तकप्पो य असमत्तो ॥७८०॥ गीयत्थुर जायकप्पो अगीयओ खलु भवे अजाओ य । पणगं समत्तकप्पो तदूणगो होइ असमत्तो॥७८१॥ उउबद्धे वासासुं सत्त
समत्तो तदूणगो इयरो । असमत्ताजायाणं ओहेण न किंचि आहवं ॥ ७८२ ॥ १०५ द्वारम् ॥ PI दिस अवरदक्षिणा १ दक्खिणा य २ अवरा य ३ दक्खिणापुबा ४ । अवरुत्तरा य ५ पुषा ६ उत्तर ७ पुषुत्तरा |
८ चेव ॥७८३॥ पउरऽन्नपाण पढमा बीयाए भत्तपाण न लहंति । तइयाएँ उवहिमाई नत्थि चउत्थी' सज्झाओ ॥७८४॥ है पंचमियाए संखडी छट्ठीएँ गणस्स भेयणं जाण । सत्तमिया गेलन्नं मरणं पुण अट्ठमे बिति ॥ ७८५ ॥ दिसिपवणगाम
सूरियछायाएँ पमजिऊण तिक्खुत्तो। जस्सोग्गहोत्ति काऊण वोसिरे आयमेज्जा वा ॥ ७८६ ॥ उत्तरपुवा पुज्जा जम्माएँ | निसायरा अहिपडंति । घाणारिसा य पवणे सूरियगामे अवन्नो उ ॥ ७८७ ॥ संसत्तग्गहणी पुण छायाए निग्गयाएँ वोसि-18
रइ । छायाऽसइ उण्हंमिवि वोसिरिय मुहत्तयं चिट्टे ॥ ७८८ ॥ उवगरणं वामगजाणुगंमि मत्तो य दाहिणे हत्थे । तत्थ|ऽन्नत्थ व पुंछे तिआयमणं अदूरंमि ॥ ७८९ ॥ १०६ द्वारम् ॥
Jain Education International
For Private Personal use only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628