Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 579
________________ कही २ वाई ३ नेमित्तिओ ४ तवस्सी ५ य । विजा ६ सिद्धो य ७ कवी ८ अद्वैव पभावगा भणिया ॥ ९३४ ॥ जिण-|| सासणे कुसलया १ पभावणा २ ऽऽययणसेवणा ३ थिरया ४ । भत्ती य ५ गुणा सम्मत्तदीवया उत्तमा पंच ॥९३५ ॥ 18 उवसम १ संवेगोऽवि य २ निबेओ ३ तह य होइ अणुकंपा ४ । अत्थिक्कं चिय ५ एए संमत्ते लक्खणा पंच ॥ ९३६ ॥ नोअन्नतिथिए अन्नतिथिदेवे य तह सदेवेऽवि । गहिए कुतित्थिएहिं वंदामि न वा नर्मसामि ॥ ९३७ । नेव अणालत्तो आलवेमि नो संलवेमि तह तेसिं । देमि न असणाईयं पेसेमि न गंधपुप्फाइ ॥९३८॥ रायाभिओगो य १ गणाभिओगो ४२, बलामिओगो य ३ सुराभिओगो ४ । कतारवित्ती ५ गुरुनिग्गहो य ६, छ च्छिडिआओ जिणसासणम्मि ॥ ९३९॥ मूलं १ दारं २ पइट्ठाणं ३, आहारो ४ भायणं ५ निही ६ । दुच्छक्कस्सावि धम्मस्स, सम्मत्तं परिकित्तियं ॥९४०॥ अत्थि Pय १ निच्चो २ कुणई ३ कयं च वेएइ ४ अस्थि निवाणं ५ । अत्थि य मोक्खोवाओ ६ छस्सम्मत्तस्स ठाणाई ॥९४१॥ |१४८ द्वारम् ॥ है एगविह १ दुविह २ तिविहं ३ चउहा ४ पंचविह ५ दसविहं ६ सम्मं । दबाइ कारगाई उवसमभेएहि वा सम्म ९४२॥ एगविहं सम्मरुई १ निसग्गऽभिगमेहि २ तं भवे दुविहं । तिविहं तं खइयाई ३ अहवावि हु कारगाईयं ॥९४३॥ ३ सम्मत्तमीसमिच्छत्तकम्मक्खयओ भणंति तं खइयं । मिच्छत्तखओवसमा खाओवसमं ववइसंति ॥ ९४४॥ मिच्छत्तस्स |उवसमा उवसमयं तं भणंति समयन्नू । तं उवसमसेढीए आइमसम्मत्तलाभे वा ॥ ९४५ ॥ विहिआणुट्ठाणं पुण कारगमिह रोयगं तु सद्दहणं । मिच्छट्ठिी दीवइ जं तत्ते दीवगं तं तु ॥ ९४६ ॥ खइयाई सासायणसहियं तं चउविहं तु विन्नेयं । Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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