Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 580
________________ सूत्रे १४८-४९ सम्यक्त्वेलक्षणं भेदाश्च गा. ९३४-६२ प्रवचन हतं सम्मत्तभंसे मिच्छत्ताऽऽपत्तिरूवं तु ॥९४७ ॥ वेययसंजुत्तं पुण एवं चिय पंचहा विणिद्दिढ । सम्मत्तचरिमपोग्गल- |वेयणकाले तयं होइ ॥ ९४८॥ एवं चिय पंचविहं निस्सग्गाभिगमभेयओ दसहा । अहवावि निसग्गरुई इच्चाइ जमागमे भणिअं॥९४९ ॥तहाहि-निस्सग्गु १ वएसरुई २ आणरुई ३ सुत्त ४ बीयरुईमेव ५। अहिगम ६ वित्थाररुई ७ किरिया ८ ॥४९६॥ संखेव ९ धम्मरुई १०॥९५०॥ जो जिणदिढे भावे चउबिहे सद्दहेइ सयमेव । एमेव नन्नत्ति य स निसग्गरुइत्ति नायवो ॥ ९५१॥ एए चेव उ भावे उवइटे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइत्ति नायबो ॥ ९५२ ॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥ ९५३ ॥ जो सुत्तमहिजतो सुएणमोगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण य (उ) सो सुत्तरुइत्ति नायबो ॥ ९५४ ॥ एगपएऽणेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्ते । उदएव तिल्लबिंदू सो बीयरुइत्ति नायबो ॥ ९५५ ॥ सो होइ अहिगमरुई सुयनाणं जस्स अत्थओ दिटुं । एक्कारस अंगाई पइन्नगा दिद्विवाओ य ॥ ९५६ ॥ दवाण सवभावा सबपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सबाहिं नयविहीहिं वित्थाररुई मुणेयवो ॥ ९५७ ॥ नाणे दंसणचरणे तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥ ९५८ ॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइत्ति होइ नायवो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसुं ॥ ९५९ ॥ जो अस्थिकायधम्मं सुयधर्म खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइत्ति नायबो ॥९६०॥ आईपुढवीसु तीसु खय १ उवसम २ वेयगं ३ च सम्मत्तं । वेमाणियदेवाणं पणिदितिरियाण एमेव ॥९६१ ॥ सेसाण नारयाणं तिरियत्थीणं च तिविहदेवाणं । नत्थि हु खइयं सम्मं अन्नेसिं चेव जीवाणं ॥ ९६२ ॥ १४९ द्वारम् ॥ RRRRRRRR ॥४९६॥ Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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