Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 570
________________ प्रवचन० ॥ ४९१ ॥ निययाहारो कीरइ बत्तीसभाएहिं ॥ ८१४ ॥ होइ पमाणाईयं तदहियकवलाण भोयणे जइणो । एगकवलाइऊणे ऊणोयरिया तवो संति ( तंमि ) ॥ ८१५ ॥ ११५ ११६।११७|११८ द्वारम् ॥ पवयणअसहाणं- १ परलाभेहा य २ कामआसंसा ३ । ण्हाणाइपत्थणं ४ इय चत्तारिऽवि दुक्खसेज्जाओ ।। ८१६ ॥ ११९ द्वा. सुहसेज्जाओऽवि चउरो जइणो धम्माणुरायरत्तस्स । विवरीयायरणाओ सुहसेज्जाउत्ति भन्नंति ॥ ८१७।। १२० द्वारम् ॥ अट्ठा १ णट्ठा २ हिंसा ३ कम्हा ४ दिट्ठी य ५ मोस ६ दिने ७ य । अज्झप्प ८ माण ९ मित्ते १० माया ११ लोभे १२ रियावहिया १३ ।। ८१८ ।। तस्थावरभूएहिं जो दंडं निसरई उ कज्ज्ञेणं । आयपरस्स व अट्ठा अट्ठादंडं तयं बिंति १ ॥ ८१९ ॥ जो पुण सरडाईयं थावरकायं च वणलयाईयं । मारेइ छिंदिऊण व छड्डेई सो अणट्ठाए २ ॥ ८२० ॥ अहिमाइवयरियस्स व हिंसिंसुं हिंसई व हिंसेही । जो दंड आरभई हिंसादंडो हवइ एसो ३ ।। ८२१ ॥ अन्नट्ठाए निसिरइ कंडाई अन्नमाहणे जो उ । जो व निअंतो सस्सं छिंदिज्जा सालिमाईयं ॥ ८२२ ॥ एस अकमहादंडो ४ दिट्ठविवज्जासओ इमो होइ । जो मित्तममित्तंति काउं घाएज अहवावि ॥ ८२३ ॥ गामाई घाएज व अतेण तेणत्ति वावि धाएजा । | दिविवज्जासेसो किरियाठाणं तु पंचमयं ५ ॥ ८२४ ॥ अत्तट्ठ नायगाईण वावि अट्ठाइ जो मुसं वयइ । सो मोसप्पच्चइओ दंडो छट्ठो हवइ एसो ६ ॥ ८२५ || एमेव आयनायगअट्ठा जो गिण्हई अदिन्नं तु । एसो अदिन्नवत्ती ७ अज्झत्थीओ | इमो होइ ॥ ८२६ ॥ नवि कोइ य किंचि भणइ तहवि हु हियएण दुम्मणो किंचि । तस्सऽज्झत्थी सीसइ चउरो ठाणा इमे तस्स ॥ ८२७ ॥ कोहो माणो माया लोभो अज्झत्थकिरिय एवेसा ८ । जो पुण जाइमयाई अट्ठविहेणं तु माणेणं Jain Education International For Private & Personal Use Only |११२-१२० शय्यान्तः रादीनि गा. ८०२-२७ ॥ ४९१ ॥ www.jainelibrary.org

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