Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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प्रवचन
मेण । सोइंदियसंवरणो पुढविजिए खंतिसंजुत्तो ॥ ८४३ ॥ इय महवाइजोगा पुढवीकाए हवंति दस भेया । आउकाया- १२१-१२१ ईसुवि इअ एए पिंडिअंतु सयं ॥ ८४४ ॥ सोइंदिएण एवं सेसेहिवि जं इमं तओ पंच । आहारसन्नजोगा इय सेसाहिं क्रियादी
सहस्सदुगं ॥ ८४५ ॥ एवं मणेण वयमाइएसु एवं तु छस्सहस्साई । न करे सेसेहिंपि य एए सबेवि अद्वारा ॥ ८४६ ॥ ॥४९२॥ दि १२३ द्वारम् ॥
दाद२९-८५ __नेगम १ संगह २ ववहार ३ रिजुसुए ४ चेव होइ बोद्धबे । सद्दे ५ य समभिरूढे ६ एवंभूए ७य मूलनया ॥ ८४७॥
एकेको य सयविहो सत्त नयसया हवंति एवं तु । बीओवि य आएसो पंचेव सया नयाणं तु ॥ ८४८॥ १२४ द्वारम् ॥8 | जन्न तयट्ठा कीयं नेव वुयं जं न गहियमन्नेसिं । आहड पामिच्चं चिय कप्पए साहुणो वत्थं ॥ ८४९ ॥ अंजणखंजणकइमलित्ते, मूसगभक्खियअग्गिविदढे । उन्निय कुट्टिय पजवलीढे, होइ विवागो सुह असुहो वा ॥ ८५०॥ नवभागकए वत्थे चउरो कोणा य दुन्नि अंता य । दो कन्नावट्टीउ मज्झे वत्थस्स एकं तु ॥ ८५१ ॥ चत्तारि देवया भागा, दुवे भागा य माणुसा । आसुरा य दुवे भागा, एगो पुण जाण रक्खसो ॥ ८५२ ॥ देवेसु उत्तमो लाभो, माणुसेसु य मज्झिमो। आसुरेसु य गेलन्नं, मरणं जाण रक्खसे ॥ ८५३ ॥ १२५ द्वारम् ॥ ___ आगम १ सुय २ आणा ३ धारणा ४ य जीए ५ य पंच ववहारा। केवल १ मणो २ हि ३ चउदस ४ दस ५ नव| पुवाइ ६ पढमोऽत्थ ॥ ८५४ ॥ कहेहि सब जो वुत्तो, जाणमाणोऽवि गृहइ । न तस्स दिति पच्छित्तं, बिंति अन्नत्थ ॥४९२। सोहय ॥ ८५५॥ न संभरे य जे दोसे, सन्भावा न य मायओ। पञ्चक्खी साहए ते उ, माइणो उन साहए १॥८५६॥
वहो सत्त नयसया हवतिहमनेसि । आहड पामिञ्च चियागो सुह असुहो वा ॥ या भागा, दुवे भागा तयट्ठा की जयगिविदहे । उन्निय कुष्ट्रिय प्रजवलत्यस एकं तु ॥ ८५१ ॥ चतार, माणुसेसु य मज्झिम
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